डाल दिया है मैंने उनका स्वेटर।
बुन रही हूँ, धीरे-धीरे।
हो जाएगा पूरा, उनकी यादों के सहारे।
जब वे लौटेंगे, तब देख के हैरान होंगे।
कैसे बना लिया तुमने मेरे बिना?
वो क्या जाने उनके हर अंग का नाप,
बसा है इन आँखों में।
जो बुन रहा है ख्वाब अनगिनत।
दिख रहा है, बस स्वेटर बुनता।
कल तक गला भी पूरा बन जाएगा।
उस बार की तरह नही होगा छोटा।
तब मन विचलित था, जब उसे बुना था।
नींद भी नही थी चैन भी नही था।
अन्दर के महाकुम्भ की गर्मी,
बाहर की ठण्ड से भयावह थी।
अब आ रहा है , चैन का संदेसा।
आज पूरा हो जाएगा इन्तज़ार का सफर।
आएगी जब ठंडी बयार,
ढक लूंगी में मन से तन,
आ जायेगी गर्मी फ़िर से, दूर करेगी ये ठिठुरन।