प्रकृति का यौवन उमड़ा है,
खिल रही हर कोमल कली।
धरा, धरा ने वेश निराला,
इठलाती है हर डाली।
बाट रहा ऋतुराज बहार
लगा रही कोयल गुहार।
देखो आम भी बौर गया,
खिल गए टेसू, कचनार।
फूलों के ये रंग-बिरंगे,
गुच्छ बना रहे मदहोश।
होली का त्यौहार आ रहा,
भरता एक अनोखा जोश।
कुछ दोहे, कुछ छंद उडे,
प्रेम भरे मन मै बहुरंग।
लाल गुलाबी चेहरे हो गये,
दादी खड़ी रह गई दंग।
माती की भीनी खुशबु ने,
याद दिलाया भाईचारा।
इंतजार किस बार का यारो,
आया पर्व है प्यारा।
आओ तुम भी रंग लगालो,
फ़िरमत कहना मिले नहीं ।
फागुन सबको गले लगता ,
उंचनीच का भेद नहीं.
होली की शुभकामनाओं के साथ.
Thursday, March 12, 2009
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