Friday, September 19, 2008

आओ मिलकर पानी बचाएं


पानी की कमी निरंतर चढ़ती जा रही है। हम नहाने, कपड़े धोने, पौधे सींचने आदि में बहुत पानी बहाते हैं। कुछ लोग आँगन धोने तथा वाहन आदि धोने में भी पानी व्यर्थ बहाते हैं।इसके साथ ही नल की खुली टोंटी से भी पानी फालतू बहता पाया जाता है। कोई भी इस बारे में सतर्क नहीं है। हमारे घर तो रोज नल आ रहा है न! बाकि की चिंता क्या करें। समस्या हम सभी की है। देश हमारा है। जो भी होगा नुकसान हमारे देश का होगा। इसलिए पानी की भविष्य में होने वाली कमी को ध्यान में रखकर कम पानी फेंके। वाहनों में थोड़ा सा पानी डालकर कपड़े से साफ करें। कपड़े धोने के बाद बचे पानी से आँगन धोएं तथा पेड़ में डालें। केवल तुलसी के पौधे को छोड़कर सभी पौधों में कपड़े धोने का पानी या झूठा पानी डाला जा सकता है।कही टूटी टोंटी देखें तो बदलने के लिए कोशिश करें। नगर निगम के जल प्रदाय संकाय को सूचित करें।

Monday, September 15, 2008

अगले बरस तू जल्दी आ!


कल हमने सबके साथ मिलकर गणपति जल में विसर्जित किए। धूम-धाम से ढोल-मंजीरे बजाते हुए गणपति की प्रतिमाओं को जलविहार कराया। आरती की और जल में यह कहते हुए विसर्जित किया-- गणपति बाप्पा मोरिया, अगले बरस तू जल्दी आ। हम एक मोहल्ले के सब लोग मिलकर गणपति बिठाते हैं। रोज मिलकर आरती करते हैं, प्रसाद बांटते हैं। पूरे दस दिन बहुत अच्छा लगता है। जब-जब गणेश-उत्सव मनाया जाएगा, हमें धन्यवाद करना होगा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का, जिन्होंने यह उत्सव मना कर लोगों को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया। यदि हर व्यक्ति थोड़ा सा समय निकालकर इस प्रकार मिलकर काम करे तो समाज में प्यार और भाईचारा बना रहेगा।

Wednesday, September 10, 2008

आप भी बनाए दम आलू


मीडियम साइज़ के ५-६ आलू लेकर छील लें। अपनी सुविधा के हिसाब से उन्हें चार टुकड़े कर लें या चाकू से गोद लें। कढाई में थोड़ा सा तेल डालकर आलू ब्राउन कर लें। ग्रेवी के लिए दो बड़े प्याज४-५ लहसुन की फांक, एक इंच अदरक बारीक़ पीस लें। कढाई में तेल डालकर जीरा, राइ डालें। पिसा हुआ मसाला डालकर भुने। सुखा मसाला हल्दी, मिर्ची, घनिया डालें। ब्राउन होने पर दो बड़े टमाटर पीसकर डालें। २ मिनट तेज आंच पर भूने । अब सीके आलू डालकर अच्छी तरह मिलाएं। यदि थोड़ा रसेदार चाहिए तो अध ग्लास पानी डालकर उबाल लें। हरी धनिया डालकर परोसें।

Monday, September 8, 2008

स्वास्थ्य

कहते हैं मन चंगा तो कठौती में गंगा, यदि मन स्वस्थ है तभी कोई कार्य ठीक से पुरा होता है। और मन तब स्वस्थ रहता है जब तन स्वास्थ हो। बीमार शरीर में रहने वाला मन भी बीमार ही रहता है और कोई भी काम ठीक ढंग से नही होता। इसलिए अपने मन को सदा हँसता - मुस्कुराता रखें। मन के दुरुस्त रहने से सभी काम अधिक गुणवत्ता से किए जा सकते हैं। यदि थकन ज्यादा है तो दूसरा काम शुरू करने से पहले मन को विश्राम दें। आराम की मुद्रा में लेटकर दिनभर के सबसे सुखद क्षण का ध्यान करें। अपने आप आपका मन नई sfurti से bhar जाएगा, फ़िर नया काम करने में maza भी आएगा और सफलता भी मिलेगी।

Saturday, September 6, 2008

मेरा सपना - मेरी किताबें


आज मैंने एक सपना देखा। मैं बहुत सी पुस्तकों से घिरी हूँ। न जाने क्या खोज रही हूँ। एक किताब उठाती हूँ, रखती हूँ, दूसरी किताब उठाती हूँ, फ़िर रखती हूँ। किसी के दो पृष्ठ देखती हूँ, तो किसी किताब को पूरा पलटते जाती हूँ, फ़िर रख देती हूँ। बहुत प्यारी हैं, ये किताबें मुझे। बस मैं ऐसे ही किताबों में डूबे रहना चाहती हूँ। न बोलते हुए भी सब-कुछ कह जाती हैं ये किताबें। मेरी हर समस्या का समाधान इन्हीं किताबों में मिल जाता है। दुखी होती हूँ तो किताब साथ देती हैं। भूल जाती हूँ तो किताबें याद दिला देती हैं। लिखने में भी सब से ज्यादा मदद ये किताबें ही करती हैं। जी नहीं सकती मै, इन किताबों के बिना। मेरी जिंदगी हैं ये किताबें। कोई न मिले ये किताबे मिल जायें, तो मेरा जीवन धन्य हो जाए। बिछडा हुआ साथी, भूली- बिसरी यादें, सभी को तारो-ताज़ा कर देती हैं ये किताबें। सफर का अकेलापन, रस्ते की बोरियत या लोगों की फालतू चै-चै सब से मुक्त कर देती हैं-ये किताबें। मैं अब तो सपने मैं भी इन्हीं किताबों के बीच दबी रहती हूँ। जैसे ही वक्त मिलता है, घुस जाती हूँ किसी न किसी किताब में। अब तो ये किताबें ही मेरा सपना भी हैं और हकीकत भी.

Friday, September 5, 2008

सम्मान

सम्मान पाने की चीज है, छीनने या मांगने की नहीं। फ़िर भी नहीं समझ पा रहे हैं हमलोग । अपने कार्यों के माध्यम सम्मान पाए, मांगे या छीने नहीं। सम्मान लूटने की होड़ लगी है। किसने कितने पाए। पर कैसे पाए, ये विचार करने वाले कम हैं, या शायद उनके पास इन फालतू बातों के लिए समय नहीं है। उसे सम्मान मिला, मुझे भी मिले, कौन नहीं चाहता। पर करें क्या, कोई दे ही नही रहा। मिले तो लेने को सब तैयार हैं। देखिए हर व्यक्ति की अपनी एक स्टाइल होती है, जिससे वह काम करता है, अपनी जीविका चलाता hई। उसी काम में बेहतरी लाकर वह उचित सम्मान पा सकता है। कहने का मतलब बस इतना है की आप जो भी करें, डूब कर करें। उसी से काम में बेहतरी आएगी और आप सम्मान पाने के हक़दार होंगे। अपने कार्यस्थल पर सबके चहेते बनने के लिए जी तोड़ मेहनत करना पड़ती है। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है की भूखे प्यासे रहकर काम को पूर्णता देना पड़ती है। शत्रु तो हर क्षेत्र में होते हैं। अक्सर कामचोर लोग इर्ष्या वश चुगलखोरी का रास्ता अपना कर कर्मठ लोगों के पीठ पीछे बुरे करते हैं। पर ऐसा ज्यादा दिन चल नहीं पाता। कर्मठ व्यक्ति की लगन और कार्यकुशलता शीघ्र ही उसे सम्मान का पत्र बना देती है। जलन की भावना से ऊपर उठकर देखें, की कैसे सम्मान नहीं मिलता। बस अपने कार्य को निरंतर बेहतर बनाएं।

Thursday, September 4, 2008

डॉक्टर राधाकृष्णन


डॉक्टर राधाकृष्णन का जन्म ५ सितम्बर को हुआ था। जब वे राष्ट्रपति बने और उनका जन्मदिन मनाने की बात की गई, तो उन्होंने सोचा ऐसा कुछ किया जाय जिससे यह दिन सदा के लिए यादगार बन जाय। उन्होंने कहा- यदि आप मेरा जन्मदिन मानना ही चाहते हैं, तो इसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाये और देश का भविष्य बनाने वाले शिक्षकों का सम्मान करें। चूँकि वे स्वयं भी एक शिक्षक थे और जानते थे कि किस प्रकार मेहनत करके एक शिक्षक अपने विद्यार्थी को गुणवान बनता है। वह सारी खूबियाँ जो उसमे हैं, देने कि कोशिश करता है। आज भी हमारे देश में इस परम्परा का निर्वाह किया जा रहा है। स्कूल, कॉलेज के विद्यार्थी अपने शिक्षकों का यथोचित सम्मान करते हैं। जिन व्यक्तियों का कल ५ सितम्बर को जन्मदिन है, उन्हें मेरी ओर से ढेर सारी शुभकामनाएँ।

जन्मदिन


जन्मदिन, एक ऐसा दिन जिस दिन जीव का आगमन दुनिया में हुआ। हर दृष्टि से एक महत्वपूर्ण दिन। प्रतिवर्ष हम इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। पर कोई ये नही सोचता कि उसकी हसीं जिन्दगी का एक साल कम हो गया है। केक काटते हैं, मिठाइयां बांटते हैं, पार्टी मनाते हैं। फ़िर भी ये भूल जाते हैं कि मधुर जीवन के ३६५ दिन और गुज़र गए। अब आप इस बारे में जरुर सोचें। अपने जन्म दिन के दिन कोई ऐसा काम करें कि लोग याद करे, आपको, आपके किए हुए काम को। अपनी हैसियत के अनुसार, पार्टी के बदले, भूखों को भोजन कराएँ, जरुरतमंदों को कुछ सामान दे, दूसरों को खुश रखने कि कोशिश करें।