Friday, September 5, 2008

सम्मान

सम्मान पाने की चीज है, छीनने या मांगने की नहीं। फ़िर भी नहीं समझ पा रहे हैं हमलोग । अपने कार्यों के माध्यम सम्मान पाए, मांगे या छीने नहीं। सम्मान लूटने की होड़ लगी है। किसने कितने पाए। पर कैसे पाए, ये विचार करने वाले कम हैं, या शायद उनके पास इन फालतू बातों के लिए समय नहीं है। उसे सम्मान मिला, मुझे भी मिले, कौन नहीं चाहता। पर करें क्या, कोई दे ही नही रहा। मिले तो लेने को सब तैयार हैं। देखिए हर व्यक्ति की अपनी एक स्टाइल होती है, जिससे वह काम करता है, अपनी जीविका चलाता hई। उसी काम में बेहतरी लाकर वह उचित सम्मान पा सकता है। कहने का मतलब बस इतना है की आप जो भी करें, डूब कर करें। उसी से काम में बेहतरी आएगी और आप सम्मान पाने के हक़दार होंगे। अपने कार्यस्थल पर सबके चहेते बनने के लिए जी तोड़ मेहनत करना पड़ती है। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है की भूखे प्यासे रहकर काम को पूर्णता देना पड़ती है। शत्रु तो हर क्षेत्र में होते हैं। अक्सर कामचोर लोग इर्ष्या वश चुगलखोरी का रास्ता अपना कर कर्मठ लोगों के पीठ पीछे बुरे करते हैं। पर ऐसा ज्यादा दिन चल नहीं पाता। कर्मठ व्यक्ति की लगन और कार्यकुशलता शीघ्र ही उसे सम्मान का पत्र बना देती है। जलन की भावना से ऊपर उठकर देखें, की कैसे सम्मान नहीं मिलता। बस अपने कार्य को निरंतर बेहतर बनाएं।

3 comments:

महेन्द्र मिश्र said...

apke vicharo se sahamat hun ki har kam tan man se samarpit hokar karna chahiye .nice post.

Udan Tashtari said...

बिल्कुल सहमत हूँ आपसे.

Gali-koocha said...

thanks both of you.