Wednesday, July 22, 2009

मेरा सृजन


कहाँ है मेरा सृजन?
क्या उसे भी रौंध डाला,
उस मशीनी दैत्य ने?
फूलने से पूर्व ही,
फूल से पूछा नहीं,
क्या तुझे भी देखना है दुनिया?
उससे भी पहले जांचकर,
जान ली उसकी दशा।
बाल है या बालिका?
अंश है मेरा सृजन,
उसे भी आने दो यहाँ,
वंश है मेरा सृजन.

Saturday, July 18, 2009

कोहरे की ओट में



कोहरे की ओट में दिखा, एक आशियाना।
कुछ पास आता, कुछ दूर जाता।
नन्हे क़दमों से आगे को बढ़ता,
फ़िर तेज़ क़दमों से पीछे को जाता।
कभी कुछ कहता, कभी गुनगुनाता,
हौले से आकर, सर्र से उड़ जाता।
उसी के पीछे हो लिया है मन,
न जाने अब कहाँ है जाता।
एक बार सोचा रूककर पूछूं,
बिछड़ने के डर से, मन डर जाता।
कहीं लौट जाए न, पास आती खु शियां।
दूर हो न जाए, मेरा आशियाना।




सूर्यग्रहण

इस बार हरियाली अमावस्या कुछ खास रहेगी। क्योंकि सूर्योदय होते ही सूर्य अस्ताचल में प्रवेश कर जायगा। लगभग दो घंटे के बाद सूर्य दिखाई देगा। वैसे बादलों का भी असर हो सकता है। कहा जा रहा है की यह योग १९४४ के बाद आया है। इस दिन का लोगों को वर्षों से इंतजार था। ऐसी मान्यता है की सूर्यग्रहण के दौरान किसी मंत्र को सिद्ध किया जाय तो वह अधिक असर कारक होता है। सभी को सूर्यग्रहण के समय अपने इष्ट की आराधना करना चाहिए जिससे सभी संभावित कष्टों को टाला जा सके। नियमित दिनचर्या में थोड़ा सा परिवर्तन कर ले। कोशिश करें की सूर्यग्रहण के समय ध्यान करें। यह ध्यान आपको डर के कारण नही करना है, बल्कि सहत भाव से करना है।
लगभग ६५ वर्ष बाद हो रहे इस सूर्य ग्रहण को हमारे मध्य प्रदेश के आलावा उत्तर प्रदेश, बिहार तथा कई निचले हिस्सों में देखा जा सकेगा। अनेक मंदिरों में विशेष पूजा-पाठ आयोजित किए जा रहे हैं। एक हिंदू मान्यता के अनुसार ग्रह के दौरान भोजन नही किया जाता। ग्रहण पूर्ण होने पर स्नान-दान करने के बाद ही भोजन करते है। यह बात पढ़े-लिखे लोगों को उचित नही लगती परन्तु विज्ञानं की दृष्टि से भी यह मन जाता है की ग्रहण के समय खाने-पीने से बचना चाहिए.
बुजुर्गों और बच्चों के लिए छूट होती है। यदि सहन न हो तो उन्हें तुलसी की पत्ती डालकर खिलाया जा सकता है। आप भी अपने घर में दूध, पीने के पानी, पके हुए भोजन आदि में तुलसी की पत्ती डालकर रखें।

Sunday, July 12, 2009

सावन के झूले


सावन के झूलों का मौसम,

कब आता है,

कब जाता है?

अब ये केवल वही बताए,

जिसने वो झूला, झूला है।

हमने तो देखा है झूला,

हरदम चलता, बिजली से,

जब वो नही होती है,

तभी नही होता झूला,

पता नही सावन या भादों,

कभी सुना था,माँ- dअदि से,

सावन का वो झूला।

नीम-आम के ऊपर झूला,

रिमझिम - रिमझिम मेघ बरसते,

झूले पर सब गीत भी गाते,

लीना-नीना, कुसुम-माधुरी,

घंटों झूलों पर बतियाते।

अब तो आम-नीम नही अपने,

कहाँ बंधेगा झूला,

pजीवन की रक्षा करने को,

पढ़ लगाना होगा.




Friday, July 10, 2009


हाँ, मुझे भी याद है
तुम्हारा वह घर।
घर ही तो था,
ईंट को गारे से जोड़कर।
बनाया गया,
जिसमे मैंने पहली बार,
यह सोचकर कदम रखा,
की मिलेंगे कुछ जाने-पहचाने,
पर तुम्हे घेरे खड़े थे,
कुछ अनजाने,
जो तुम्हारे अपने थे, शायद!
मुझे घेरकर,
सोच रहे थे,
न जाने कौन है।
जब तुमने ,
लाकर दिया था,
वह नीला ,दुशाला,
देखा था मैंने,
तुम्हे कृतघ्न होकर।
तब शायद उनको,
विश्वास हुआ था,
मै भी हूँ तुम्हारी,
एक परछाईं!
छोड़कर सारी औपचारिकता,
तुमने मुझे वह दिया,
जो मैंने चाहा।
तब निर्णय किया,
अब मै ईंट -गारे के ,
इस घर को घर बनाउंगी।
जो मैंने पाया,
उसे बांटकर,
अपनी इस नन्ही दुनिया को ,
खूबसूरत बनाउंगी।







Tuesday, July 7, 2009

श्रावण मै स्वास्थ्य

सावन के महीने में हरियाली के साथ ही मौसम भी खुशनुमा हो जाता है। खट्टा-मीठा-चटपटा खाने को मन ललचाने लगता है। बारिश की फुहारों के साथ भजिये खाने का मज़ा ही निराला होता है। परन्तु खाने के स्वाद के साथ ही स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें। हो सके तो बरसात में पानी उबालकर पियें। जितनी भूख हो उससे एक रोटी कम ही खाएं। अधिक खाने और ज्यादा भूखे रहने से अनेक बीमारियाँ होती हैं पर कम खाने से कुछ बिमारिओं से बचा जा सकता है। उत्तम स्वास्थ्य ही हमारी पूँजी है।

श्रावण आया


श्रावण आया झूमकर, बारिश में भीगे हम सब।


धरती ने ओढी हरियाली, फैली है ये छटा निराली।


बिजली की चम-चम, बूंदों कि छम-छम।


बादल के गर्जन से , डरता है मेरा मन।


कब नदी भरेगी, सागर तक जायेगी?


मेरे मन का जल, भरकर ले आएगी।


सागर से मिलना ही, नदी का लक्ष्य है।


सबको जल देना, नदी का लक्ष्य है।