Wednesday, July 30, 2008

जयंती/पुण्यतिथि



साहित्य सृजन को धरातल देने वाले प्रेमचंद को सभी जानते हैं। उनके लेखन ने समाज को जो सीख दी वह आज भी कारगर है। उन्होंने नाटक, कहानियाँ और उपन्यास जो भी लिखे, उनमे मानव जीवन की वास्तविकताएँ व्यक्त की। अपने जीवन के ५६ वर्षों में प्रेमचंद जी ने अपनी प्रगतिशील लेखनी के सुनहरे रंग बिखेरे, जो आज भी उतने ही प्रभावशाली हैं, जिनते रचना के समय रहे। नमन है ऐसी महान कलम को जिसने जीवन को दिशा दी और पाठकों को संतुष्टि।


आज ३१जुलाई kओ भारतीय संगीत जगत के एक अध्याय कहे जाने वाले मोहम्मद रफी का पुन्य स्मरण जरुरी है। संगीत की कोई भी महफ़िल उनकी आवाज दस बिना सूनी रहती है। २५ हजार से भी अधिक गीत गाने वाले रफी हिन्दी फिल्मी संगीत के क्षेत्र में ऐसे महान गायक थे जिन्होंने हर तरह के गीत गाकर ख़ुद को अमर कर दिया । आज वो हमारे बीच नहीं है पर उनके गीत सदा हमारे साथ रहेंगे।

Tuesday, July 29, 2008

भविष्य की चुनौतियाँ

प्राचीनतम भारतीय सभ्यता अब केवल रूम डेकोरेशन का सिम्बल बनती जा रही है। प्रत्येक सौ - दो सौ वर्षों में विश्व में परिवर्तन होते आए हैं। इन परिवर्तनों से समाज और देश में बहुत से सुधार भी हुए। समाज की उत्तरोत्तर उन्नति के साथ ही क्रमिक विकास हुआ। अनेक आविष्कार हुए। पहनने, खाने, निर्माण करने और मनोरंजन के साथ ही शिक्षा के क्षेत्र मे भी क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। समाज का सबसे बड़ा वर्ग 'युवा वर्ग ' इससे आसानी से प्रभावित हुआ। नित नए आविष्कारों से आकर्षित होकर 'युवा वर्ग' आधुनिकता मे लिप्त होने लगा। इससे उसकी याददाश्त और कार्य करने की क्षमता दोनों मे ही असर पड़ा। नवीन तकनीकों पर हद से ज्यादा आश्रित होने से उसकी मेमोरी क्षीण होने लगी। माउस के एक क्लिक से मनचाही जानकारी की उपलब्धता उसकी कमजोरी बनने लगी। उसकी शारीरिक क्षमताओं पर भी विपरीत प्रभाव दिखाई देने लगे। ज्ञान और शक्ति के साथ यदि शारीरिक बल , विकसित होने के बदले कम होने लगे तो निश्चय ही यह चिंता का विषय है। अपने बौध्दिक बल और स्वस्थ शरीर को दृढ़ बनाएं तथा आधुनिक तकनीकों के प्रयोग के बाद व्यायाम अवश्य करें।

Monday, July 28, 2008

हँसी सेहत के लिए वरदान है

कोई हँसता दाँत दिखाकर, कोई मुख हाथ रखे। किसी ने केवल होंठ हिलाए, चाहे तुमको हँसी लगे। हँसना इक अच्छी भाषा है, थोड़े में बहुत कहे। हंसते-हंसते रो पड़ते कुछ, लगता जैसे दर्द सहे। कोई सपने देख के हँसता, कोई बीती याद करे। कुछ तो हंसने से भी डरते, जैसे कोई पाप करे। हंसो-हंसो और खूब हंसो, हँसना जीवन का आधार। रोते जीवन नहीं कटेगा, हो जाओगे तुम बीमार। हँसना जीवन काल बढाए, चाहो तो मनो इक बात। हँसते-हँसते बूढे हो गए, जिनके गिर गए पूरे दाँत। लोट-पोट होकर जो हँसते, उनकी देखो सेहत न्यारी। खूब चैन की नींद हैं सोते, पास न आ पति बीमारी।

Sunday, July 27, 2008

बड़ा अनोखा है - रंगों का संसार

रंग चाहे इन्द्रधनुष के हों या फूलों के आकर्षित कर ही लेते हैं। रंगों की अलग-अलग पहचान है। हर रंग की अपनी छवि निर्धारित सी है। रंगों के क्रम का भी विशिष्ट स्थान है। देवताओं और सामान्य मनुष्य के लिए रंगों का प्रभाव और महत्त्व भिन्न हो सकता है। अपनी पसंद के अनुसार ही हम रंगों का चयन करते हैं, परन्तु सभी रंगों का वैज्ञानिक प्रभाव हम पर पड़ता है। बै, जा , नी , ह, पी,ना , ला - यह इन्द्रधनुष के रंगों की श्रंखला है। बैगनी रंग आशा से परिपूर्ण
आदर और मर्यादा का रंग है। इसी रंग के karan हम bhavnatmak judav का अनुभव करते हैं। इसी से मिलता julta रंग है jamuni जो shalinta को darshata है। नीला रंग ललित kalaon
की or ingit करता है। यह रंग मन को sukun देता है। नीला रंग सेवा भाव को भी दर्शाता है। प्रयुक्त किया जाता है विवाह पूजा आदि। के लिए पीले रंग का चुनाव अच्छा मन जाताहै जाताहै जाताहै है। पीला नारंगी रंग देवताओं . देवताओं देवताओं देवताओं में प्रयुक्त किया जाता है । विवाह पूजा आदि के लिए पीले रंग का chunav achchha mana jatahai। narangi rang devtaonkamana जाता है । narangi रंग sansarik शक्ति को दर्शाता है . लाल रंग sundarta का prateek mana जाता है

Saturday, July 26, 2008

आवश्यकता

आवश्यकता, आविष्कार की जननी है . इन आवश्कताओं से नवीन विधियों का जन्म होता है। शिक्षा हमारे जीवन की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। जो हमारा सर्वांगीण विकास कराती है। शिक्षा प्राप्त करने की कोई उम्र नहीं होती। फ़िर भी यह निर्धारित किया गया है की ५-६ वर्ष की उम्र से शिक्षा का आरंभ होना चाहिए। बाल्यकाल में दी गई शिक्षा प्रभावी और स्थायी होती है, किंतुयदि किसी कारणवश व्यक्ति उस समय शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता तो जब भी मौका मिले उसे अध्ययन में लग जन चाहिए। आजादी के बाद से हमारे देश की सरकार ने शिक्षा सम्बन्धी अनेक योजनाएं चलाई और आज भी चलाई जा रही हैं। आवश्यकता है आपको आगे आकर उसे ग्रहण करने की। यदि एक आम पढ़ा लिखा नागरिक दो व्यक्तियों को शिक्षित करने का बीडा उठा ले तो निश्चय ही देश तरक्की करेगा।

भोजन

वैसे तो हर व्यक्ति अपनी ही पसंद का खाना चाहता है। परन्तु कभी उसे दूसरों के मन का खाकर संतोष करना पड़ता है। मानव स्वभाव से तो शाकाहारी प्राणी है, फ़िर भी शौक और स्वाद के लिए वह मांसाहार का सहारा लेने लगता है।
मांसाहार एक दृष्टि से जीवहत्या का पर्याय मन जाता है। मांसाहार न तो समग्र आहार है और न ही पूर्ण पौष्टिक। बिना सब्जी, दल, दूध और दही के शरीर की जरूरतें पूरी नहीं होती। मांस में अनेक इसे हानिकारक तत्व होते हैं जो शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं। अतः अपने स्वाद की पूर्ति के लिए स्वयं को बीमार न बनाए और जीव हत्या करने से बचें।

Thursday, July 24, 2008

हस्ताक्षर

व्यक्तित्व का दर्पण होते हैं। व्यक्ति के हस्ताक्षर से उसके व्यक्तित्व का शब्दशः अंदाजा लगाया जा सकता है। सुंदर और आकर्षक हस्ताक्षर से ऐसा जान पड़ता है की व्यक्ति सुलझा हुआ और सज्जन है। परन्तु कभी- कभी हस्ताक्षर से लोग धोखा भी खा जाते हैं। कई सुंदर और चुटीले हस्ताक्षर करने वाले चालक और जालसाज भी हो सकते हैं। इसका उल्टा है कि टेड - mede aur कुरूप हस्ताक्षर करने वाले भी साहसी और उदार होते हैं। अस्पष्ट और अपठनीय हस्ताक्षर अच्छे नहीं समझे जाते।

संशय दूर करें

अवसाद, एक रोग बनता जा रहा है। इसका प्रमुख कारण hamari अति vyastata है। हमारा शरीर एक drishyman sanstha है । शरीर और मन me अन्तर है । मन दिखाई नहीं देता पर वह शरीर से jyada majboot होता है । यदि यह मन किसी शंका से ghir जाए to उसे शंका का makadjal अपने me uljhata jata है। इसलिए शंका का निवारण turant करें।

प्रेम सीखें पक्षियों से

भारतीय संस्कृति में सदा से पशु और पक्षी पूजनीय रहे। आज भी हम ईश्वर को जिस भी रूप में पूजें, कोइ न कोई पशु या पक्षी उनके साथ होता है हमारे धर्म ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में पशुओं और पक्षियों के दिव्या चक्षुओं की व्याख्या की गई है। इन जीवों के प्रेम और स्नेह का अंदाज अनोखा है। बिना किसी भेदभाव के वे हमारे मित्र बनकर हमारी सहायता करने को तत्पर रहते हैं। फ़िर हम क्यों अपना कर्तव्य और धर्म से भटक रहे हैं। हमें भी उनसे प्रेरणा लेकर स्नेह और सौहार्द से मिलकर रहना चाहिए।

Tuesday, July 22, 2008

स्मरण




आज २३ जुलाई वह दिन है, जिस दिन भारत माता के दो महान सपूत जन्मे। इन शहीदों ने अपने लहू का हर कतरा देश की आजादी की लडाई में बहा दिया। फलस्वरूप १५ अगस्त १९४७ को देश आजाद हो गया। हम उन अमर शहीदों को श्रद्धा नमन् करते हैं। लोकमान्य बाल गंगाधर ने देश को एकजुट होकर उत्सवों के माध्यम से सहेजा। चंद्र शेखर आजाद ने दुश्मन की गोली से न मरने की अपनी कसम को निभाया।

समीक्षा

कवि दुष्यंत कुमार का गजल संग्रह 'साये में धूप' अवश्य पढ़े। अति सरल भाषा में लिखी उनकी रचनाए बरबस ही आकर्षित कर लेती हैं। गंगा की समस्याओं से प्रेरित हो कवि ने पेज ३० पर जो पंक्तियाँ लिखी हैं - उनमे देश की अन्य समस्याओं का दर्द समाहित है। उन्हीं की चंद पंक्तियाँ हैं -

एक कबूतर , चिट्ठी लेकर, पहली- पहली बार उड़ा। मौसम एक गुलेल लिए था पट से नीचे आन गिरा।
बंजर धरती, झुलसे पौधे, बिखरे कांटे तेज हवा, हमने घर बैठे -बैठे ही सारा मंजर देख लिया।
चट्टानों पर खड़ा हुआ तो छाप रह गई पावों की, सोचो कितना बोझ उठाकर मै इन राहों से गुजरा।
सहने को हो गया इकठ्ठा इतना सारा दुःख मन में, कहने को हो गया की देखो अब मैं तुमको भूल गया।
धीरे -धीरे भीग रही हैं साडी ईंटे पानी में, इनको क्या मालूम की आगे चलकर इनका क्या होगा।

Monday, July 21, 2008

बात पकड़ की ----

किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए जरुरी है, लक्ष्य का निर्धारण, इसके बाद बात आती है उसे प्राप्त करने की। अपने निर्धारित लक्ष्य को पाने हेतु ,लगन और विश्वास के साथ मेहनत भी उतनी ही जरुरी है। डटे रहो।

स्वागत * * * * *

करते आज तुम्हारा स्वागत, मेरे नेह पधारो।
करुणा के बिखरे इस क्षण में, जीवन ज्योत जगाओ।
उमड़ -घुमड़ आशाओ के घन, पथ में बाग लगाओ।
मधुरा कलरव तरुण पल्लवित, सौरभ गीत सुनाओ।
कनुप्रिया के सजल चक्षु में, मिलन के भाव जगाओ।
नूपुर सी झनके तरुनाई, ऐसा राग सुनाओ।
स्वागतम * * * * * *

देश की माटी

देश की माटी , माथे लगाकर , धरती की समता का ओढे दुशाला।
पीड़ा को हराने का, खुशियाँ बढ़ाने का, हिलमिलाता सा स्वप्न है मैंने पाला।
स्वागत है उनका जो इसे स्वीकारे,उनका भी स्वागत है जो इससे हारे।
हाथो में हाथ ले साथ देना होगा, इंसा को इंसानियत से मिलाना ही होगा।
जयहिंद !