वैसे तो हर व्यक्ति अपनी ही पसंद का खाना चाहता है। परन्तु कभी उसे दूसरों के मन का खाकर संतोष करना पड़ता है। मानव स्वभाव से तो शाकाहारी प्राणी है, फ़िर भी शौक और स्वाद के लिए वह मांसाहार का सहारा लेने लगता है।
मांसाहार एक दृष्टि से जीवहत्या का पर्याय मन जाता है। मांसाहार न तो समग्र आहार है और न ही पूर्ण पौष्टिक। बिना सब्जी, दल, दूध और दही के शरीर की जरूरतें पूरी नहीं होती। मांस में अनेक इसे हानिकारक तत्व होते हैं जो शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं। अतः अपने स्वाद की पूर्ति के लिए स्वयं को बीमार न बनाए और जीव हत्या करने से बचें।
Saturday, July 26, 2008
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