देश की माटी , माथे लगाकर , धरती की समता का ओढे दुशाला।
पीड़ा को हराने का, खुशियाँ बढ़ाने का, हिलमिलाता सा स्वप्न है मैंने पाला।
स्वागत है उनका जो इसे स्वीकारे,उनका भी स्वागत है जो इससे हारे।
हाथो में हाथ ले साथ देना होगा, इंसा को इंसानियत से मिलाना ही होगा।
जयहिंद !
Monday, July 21, 2008
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