Tuesday, July 22, 2008

समीक्षा

कवि दुष्यंत कुमार का गजल संग्रह 'साये में धूप' अवश्य पढ़े। अति सरल भाषा में लिखी उनकी रचनाए बरबस ही आकर्षित कर लेती हैं। गंगा की समस्याओं से प्रेरित हो कवि ने पेज ३० पर जो पंक्तियाँ लिखी हैं - उनमे देश की अन्य समस्याओं का दर्द समाहित है। उन्हीं की चंद पंक्तियाँ हैं -

एक कबूतर , चिट्ठी लेकर, पहली- पहली बार उड़ा। मौसम एक गुलेल लिए था पट से नीचे आन गिरा।
बंजर धरती, झुलसे पौधे, बिखरे कांटे तेज हवा, हमने घर बैठे -बैठे ही सारा मंजर देख लिया।
चट्टानों पर खड़ा हुआ तो छाप रह गई पावों की, सोचो कितना बोझ उठाकर मै इन राहों से गुजरा।
सहने को हो गया इकठ्ठा इतना सारा दुःख मन में, कहने को हो गया की देखो अब मैं तुमको भूल गया।
धीरे -धीरे भीग रही हैं साडी ईंटे पानी में, इनको क्या मालूम की आगे चलकर इनका क्या होगा।

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