Sunday, July 12, 2009

सावन के झूले


सावन के झूलों का मौसम,

कब आता है,

कब जाता है?

अब ये केवल वही बताए,

जिसने वो झूला, झूला है।

हमने तो देखा है झूला,

हरदम चलता, बिजली से,

जब वो नही होती है,

तभी नही होता झूला,

पता नही सावन या भादों,

कभी सुना था,माँ- dअदि से,

सावन का वो झूला।

नीम-आम के ऊपर झूला,

रिमझिम - रिमझिम मेघ बरसते,

झूले पर सब गीत भी गाते,

लीना-नीना, कुसुम-माधुरी,

घंटों झूलों पर बतियाते।

अब तो आम-नीम नही अपने,

कहाँ बंधेगा झूला,

pजीवन की रक्षा करने को,

पढ़ लगाना होगा.




2 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

ataynt sundar aur bhavpurn geet
ab kahan sawan ke jhule rah gaye.
jyada tar log to jhulo ka matlab melon me hone wale jhulo ko hi samjhate hai..

sawan ke jhule to ab piche hi ho gaye hai..

badhiya kavita..badhayi ho!!!

M VERMA said...

सही है अब क्या सावन ! अब क्या सावन के झूले.
मौसम जब कृत्रिम है तो झूले कब पीछे रहने वाले है.
बहुत सुन्दर लिखा है