कोहरे की ओट में दिखा, एक आशियाना।
कुछ पास आता, कुछ दूर जाता।
नन्हे क़दमों से आगे को बढ़ता,
फ़िर तेज़ क़दमों से पीछे को जाता।
कभी कुछ कहता, कभी गुनगुनाता,
हौले से आकर, सर्र से उड़ जाता।
उसी के पीछे हो लिया है मन,
न जाने अब कहाँ है जाता।
एक बार सोचा रूककर पूछूं,
बिछड़ने के डर से, मन डर जाता।
कहीं लौट जाए न, पास आती खु शियां।
दूर हो न जाए, मेरा आशियाना।
7 comments:
बहुत सुंदर.
अच्छी कविता...
सुन्दर
bahut sunder
कहीं लौट जाए न, पास आती खुशियां।
दूर हो न जाए, मेरा आशियाना।
बहुत सुन्दर अहसास -- खूबसूरत आशंका
सुन्दर रचना. सुन्दर चित्र
अच्छा लिखा है आपने । आपके विचार यथार्थ के निकट हैं। शब्दों का सहज प्रयोग भाषा को आकर्षक और विचारों को प्रभावशाली बनाता है।
मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-शिवभक्ति और आस्था का प्रवाह है कांवड़ यात्रा-समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
http://ashokvichar.blogspot.com
बहुत अच्छे भाव हैं ...अच्छा लिखा है आपने
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
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