Saturday, July 18, 2009

कोहरे की ओट में



कोहरे की ओट में दिखा, एक आशियाना।
कुछ पास आता, कुछ दूर जाता।
नन्हे क़दमों से आगे को बढ़ता,
फ़िर तेज़ क़दमों से पीछे को जाता।
कभी कुछ कहता, कभी गुनगुनाता,
हौले से आकर, सर्र से उड़ जाता।
उसी के पीछे हो लिया है मन,
न जाने अब कहाँ है जाता।
एक बार सोचा रूककर पूछूं,
बिछड़ने के डर से, मन डर जाता।
कहीं लौट जाए न, पास आती खु शियां।
दूर हो न जाए, मेरा आशियाना।




7 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बहुत सुंदर.

विवेक said...

अच्छी कविता...

Anonymous said...

सुन्दर

mehek said...

bahut sunder

M VERMA said...

कहीं लौट जाए न, पास आती खुशियां।
दूर हो न जाए, मेरा आशियाना।
बहुत सुन्दर अहसास -- खूबसूरत आशंका
सुन्दर रचना. सुन्दर चित्र

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

अच्छा लिखा है आपने । आपके विचार यथार्थ के निकट हैं। शब्दों का सहज प्रयोग भाषा को आकर्षक और विचारों को प्रभावशाली बनाता है।
मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-शिवभक्ति और आस्था का प्रवाह है कांवड़ यात्रा-समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-

http://ashokvichar.blogspot.com

अनिल कान्त said...

बहुत अच्छे भाव हैं ...अच्छा लिखा है आपने

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति