श्रावण आया झूमकर, बारिश में भीगे हम सब।
धरती ने ओढी हरियाली, फैली है ये छटा निराली।
बिजली की चम-चम, बूंदों कि छम-छम।
बादल के गर्जन से , डरता है मेरा मन।
कब नदी भरेगी, सागर तक जायेगी?
मेरे मन का जल, भरकर ले आएगी।
सागर से मिलना ही, नदी का लक्ष्य है।
सबको जल देना, नदी का लक्ष्य है।
3 comments:
सुन्दर रचना. अच्छी अभिव्यक्ति
बहुत बढिया .
उम्दा!!
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