Wednesday, July 22, 2009

मेरा सृजन


कहाँ है मेरा सृजन?
क्या उसे भी रौंध डाला,
उस मशीनी दैत्य ने?
फूलने से पूर्व ही,
फूल से पूछा नहीं,
क्या तुझे भी देखना है दुनिया?
उससे भी पहले जांचकर,
जान ली उसकी दशा।
बाल है या बालिका?
अंश है मेरा सृजन,
उसे भी आने दो यहाँ,
वंश है मेरा सृजन.

3 comments:

रंजना said...

बेहतरीन !!!!! और क्या कहूँ........

M VERMA said...

उसे भी आने दो यहाँ,
वंश है मेरा सृजन.
वाकई वंश जैसा सृजन भी तो अंश है वज़ूद का..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

प्रमोद ताम्बट said...

बेहद संवेदनशील कविताएँ, जया जी अगर कविताओं पर ही ध्यान केन्द्रित करें तो बेहतरीन सृजन कर सकती हैं, आशा है आगे और भी अच्छी कविताएं पढ़ने को मिलेंगी

प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in