Saturday, September 6, 2008

मेरा सपना - मेरी किताबें


आज मैंने एक सपना देखा। मैं बहुत सी पुस्तकों से घिरी हूँ। न जाने क्या खोज रही हूँ। एक किताब उठाती हूँ, रखती हूँ, दूसरी किताब उठाती हूँ, फ़िर रखती हूँ। किसी के दो पृष्ठ देखती हूँ, तो किसी किताब को पूरा पलटते जाती हूँ, फ़िर रख देती हूँ। बहुत प्यारी हैं, ये किताबें मुझे। बस मैं ऐसे ही किताबों में डूबे रहना चाहती हूँ। न बोलते हुए भी सब-कुछ कह जाती हैं ये किताबें। मेरी हर समस्या का समाधान इन्हीं किताबों में मिल जाता है। दुखी होती हूँ तो किताब साथ देती हैं। भूल जाती हूँ तो किताबें याद दिला देती हैं। लिखने में भी सब से ज्यादा मदद ये किताबें ही करती हैं। जी नहीं सकती मै, इन किताबों के बिना। मेरी जिंदगी हैं ये किताबें। कोई न मिले ये किताबे मिल जायें, तो मेरा जीवन धन्य हो जाए। बिछडा हुआ साथी, भूली- बिसरी यादें, सभी को तारो-ताज़ा कर देती हैं ये किताबें। सफर का अकेलापन, रस्ते की बोरियत या लोगों की फालतू चै-चै सब से मुक्त कर देती हैं-ये किताबें। मैं अब तो सपने मैं भी इन्हीं किताबों के बीच दबी रहती हूँ। जैसे ही वक्त मिलता है, घुस जाती हूँ किसी न किसी किताब में। अब तो ये किताबें ही मेरा सपना भी हैं और हकीकत भी.

4 comments:

डॉ .अनुराग said...

दुआ है आप हमेशा किताबो के बीच रहे ....

रंजन (Ranjan) said...

सफर का अकेलापन, रस्ते की बोरियत या लोगों की फालतू चै-चै सब से मुक्त कर देती हैं-ये किताबें

ये बढ़ीया है..

Safat Alam Taimi said...

धन्यवाद , रचना बहुत अच्छी लगी, ऐसे ही हमें लाभांवित होने का अवसर प्रदान करती रहें । दिल की गहराई से बधाई स्वीकार करें

Udan Tashtari said...

किताबों की निश्चित ही एक सुनहरी दुनिया है.

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