Wednesday, May 13, 2009

भीगा मन


आज पहली बार भीगा मन,
इससे पहले बस तन भीगा था।
चन्द फुहारों के छींटों से,
बादल की गिरती बूंदों से।
सर्द हवाएं बेकल करतीं,
गिरती बूंदों को बिखरातीं।
न जाने क्यूँ तन पर पड़ती,
मन को कभी नहीं छू पाई।
आज मगर वो बारिश आई,
एक अनोखा संदेश लाई
तन भीगा, मन भीग गया है,
कोई इसको जान न पाया।
मैंने क्या खोया क्या पाया?