आज पहली बार भीगा मन,
इससे पहले बस तन भीगा था।
चन्द फुहारों के छींटों से,
बादल की गिरती बूंदों से।
सर्द हवाएं बेकल करतीं,
गिरती बूंदों को बिखरातीं।
न जाने क्यूँ तन पर पड़ती,
मन को कभी नहीं छू पाई।
आज मगर वो बारिश आई,
एक अनोखा संदेश लाई
तन भीगा, मन भीग गया है,
कोई इसको जान न पाया।
मैंने क्या खोया क्या पाया?
इससे पहले बस तन भीगा था।
चन्द फुहारों के छींटों से,
बादल की गिरती बूंदों से।
सर्द हवाएं बेकल करतीं,
गिरती बूंदों को बिखरातीं।
न जाने क्यूँ तन पर पड़ती,
मन को कभी नहीं छू पाई।
आज मगर वो बारिश आई,
एक अनोखा संदेश लाई
तन भीगा, मन भीग गया है,
कोई इसको जान न पाया।
मैंने क्या खोया क्या पाया?
1 comment:
सुंदर
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