Saturday, October 24, 2009

आ गई ठण्ड


डाल दिया है मैंने उनका स्वेटर।

बुन रही हूँ, धीरे-धीरे।

हो जाएगा पूरा, उनकी यादों के सहारे।

जब वे लौटेंगे, तब देख के हैरान होंगे।

कैसे बना लिया तुमने मेरे बिना?

वो क्या जाने उनके हर अंग का नाप,

बसा है इन आँखों में।

जो बुन रहा है ख्वाब अनगिनत।

दिख रहा है, बस स्वेटर बुनता।

कल तक गला भी पूरा बन जाएगा।

उस बार की तरह नही होगा छोटा।

तब मन विचलित था, जब उसे बुना था।

नींद भी नही थी चैन भी नही था।

अन्दर के महाकुम्भ की गर्मी,

बाहर की ठण्ड से भयावह थी।

अब आ रहा है , चैन का संदेसा।

आज पूरा हो जाएगा इन्तज़ार का सफर।

आएगी जब ठंडी बयार,

ढक लूंगी में मन से तन,

आ जायेगी गर्मी फ़िर से, दूर करेगी ये ठिठुरन।




8 comments:

शरद कोकास said...

रोमन और देवनागरी मे यह नया प्रयोग है क्या ? ठंड तो आ रही है सच्मुच ।
ek nazar yahan bhi http://kavikokas.blogspot.com

M VERMA said...

स्वेटर के सहारे भावनाओ को बखूबी व्यक्त किया
---
कहीं कहीं रोमन शब्द कविता प्रवाह में बाधा डाल रहे हैं. यदि सम्भव हो तो ठीक कर लें.

Anonymous said...

आ गयी ठण्ड... और पड़ गए हम बीमार भी... :(


बढ़िया रचना..

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

स्वेटर और इंतजार का प्यार से पारी पूर्ण सुन्दर रचना......

Udan Tashtari said...

मौसमी रचना..भावपूर्ण.

vandana gupta said...

sweater ke sath jo intzaar ki bhavnaon ko buna hai wo sarahniya hai.

संगीता पुरी said...

मौसम के अनुरूप सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बधाई !!

उन्मुक्त said...

प्यारी कविता है।
आप अपने बारे में लिखती हैं कि, 'I have an attractive voice'. आप पॉडकास्ट क्यों नहीं करती।

कृपया वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें। यह न केवल मेरी उम्र के लोगों को तंग करता है पर लोगों को टिप्पणी करने से भी हतोत्साहित करता है। आप चाहें तो इसकी जगह कमेंट मॉडरेशन का विकल्प ले लें।