अंदर का नही, बाहर का।
वर्षों से इसी तरह, जलाया जा रहा है।
जल रहा है अविरल,
उसका अन्तःकरण, देखकर,
बलात्कार, भ्रूण हत्या,
बढ़ते भ्रष्टाचार,
मौन है फ़िर भी,
सुलग रहा है ,भीतर ही भीतर।
बाहर का दैत्य जलाया जा रहा है,
एक अदृश्य दैत्य द्वारा,
नही दिख रहा किसी को ,
नंगी आंखों से भी।
समाज का वह रावन,
जो छीन रहा है,
बालमन ki कोमलता,
बचपन के खिलौने।
थमा रहा है, एक लुप्त हथियार।
कैसे बचे? bikhrta बचपन?
कैसे मरे अंदर का रावन?
5 comments:
भीतर का आसुरी रावण मरे ... रावण की विद्वता कायम रहे ...
बहुत शुभकामनायें ..!!
बहुत सुन्दर
सच ही है अन्दर का रावण मरेगा तभी ---
सही कहा
वस्तुतः रावण प्रतीक है
मानसिकता का
मनोवृत्ति का
कागज़ के रावण के जलने का
तमाशा देखने वाले
अपने मन के रावण को
जब नष्ट करेंगे
तभी इस पर्व की
सार्थकता होगी.
हमेशा की तरह सुन्दर रचना के लिए बधाई.
सही कहा आपने
रावण प्रतीक है इन सब बुराइयों का |
फिर पता नहीं क्यों एक पुतला जला कर हम खुश हो जाते हैं |
कैसे मरे अंदर का रावण? बहुत गंभीर प्रश्न है लेकिन उत्तर खोजना बहुत जरूरी है और बहुत जल्द ...
अछि अभिव्यक्ति....:)
शुभकामनाये
हमेशा की तरह सुन्दर रचना के लिए बधाई.
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