Monday, August 31, 2009

४४ बसंत


छवि जोड़ेंबीत गए एक-एक कर,
जीवन के ४४ बसंत
हर दिन, हर पल कुछ नया संजोया,
मिला नहीं पर कोई अंत
ढूंढ रहे थे नयन मगन हो,
एक अनवरत सत्य जो,
लघु, दीर्घ और अतिदीर्घ है,
यह यात्रा अविरल अनंत
मूल्यों का संग्रह रहा,
हर पग पर आता-जाता
कभी निभाया,कभी निपटाया,
सहज, सरल मन को भाता
फ़िर आया एक नया शगूफा,
छेड़ गया मन का दर्पण
रोया, छटपटाया कितना,
सुना गया स्वर क्रंदन
एक समय ऐसा भी आया,
भटक गया जब मन ऐसा
नहीं रुका गतिरोध ह्रदय का,
सब प्रतिरोध व्यर्थ गया.


6 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

Sundar Bhav se saji behtareen kavita,,

badhayi..

M VERMA said...

बसंत हमेशा सुखकारी होता है.
बेहतरीन रचना.

फ़िरदौस ख़ान said...

bahut sundar...

समयचक्र said...

बेहतरीन रचना.

श्रीकांत पाराशर said...

chhoti si rachna mein salike se sabd sanyojan. achhi ban padi hai kavita.

नीरज गोस्वामी said...

इस भावपूर्ण रचना की प्रस्तुति के लिए बधाई...
नीरज