माटी की ममता माथे लगाकर,
धरती की समता का ओढ़ दुशाला।
पीढा को हरने का, खुशियों को बाँटने का,
हिल्मिलाता स्वप्न मैंने पाला।
स्वागत है, उनका जो इसे स्वीकार,
उनका भी स्वागत है जो इससे हारे।
हाथों में हाथ लिए साथ देना होगा,
इंसा को इंसानियत से मिलाना ही होगा।
आप भी हो जायें इसमे शामिल,
दूसरों को बनाये काम के
हमने जो सोचा है, सच व्ही होगा।
भारत हमारा सबसे आगे होगा।
आओ मिलकर देश को आगे ले चलें।
धर्म, जाती, रंग भेद से ऊपर उठें।
लायें नया विचार निराला,
जो बनाये देश को हरियाला-उजला ।
Monday, January 12, 2009
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