Wednesday, August 20, 2008

पहचान

प्रतिभा की पहचान मौलिकता से ही होती है। जो जितना अपनी तरह से लिखता है, वह उतना ही प्रभावशाली होता है। दूसरो का अनुकरण करना बुरा नहीं है, परन्तु ज्यो का त्यों किसी की नक़ल करना बहुत बुरी बात है। अपने व्यक्तित्व की पहचान बनने के लिए हमें अपने कार्यों, लेखन, रहने के ढंग सभी में मौलिकता बनाकर रखनी पड़ती है। यही हमारी वास्तविक संपत्ति है। इससे हमारा व्यक्तित्व निखरता है और साथ ही आकर्षण भी पैदा करता है। इस निखर को लेन और आकर्षण पैदा करने के लिए अपनी मौलिकता को बनाए। इसे बनाना और बढ़ाना दोनों ही आसान है। अपनी शक्ति को पहचाने, मनन करें। जो भी कार्य करें, डूबकर करें। अपनी मौलिकता को कभी भी दबाने का प्रयास न करें। इससे हमारी प्रतिभा कम और ख़त्म भी हो सकती है। हर व्यक्ति में अपना अलग अंदाज़ होता है। उसे पहचानकर विकसित करे।

4 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत अच्छी सोंच।

Udan Tashtari said...

आप सही कह रही हैं ... बहुत आभार.

kabira said...

very witty satire

विक्रांत बेशर्मा said...

"प्रतिभा की पहचान मौलिकता से ही होती है। "

बहुत सही कहा आपने !

जन्माष्टमी कि हार्दिक शुभकामनाएं !!!