Saturday, August 9, 2008

मन का दर्पण हैं आँखें


आँखें वह सब कह देती हैं जो ज़बान कहने में हिचकती या चुप रह जाती है। जो कहा जा रहा है कितना सही है, कितना ग़लत , यह भी आंखों से दिख जाता है। मानसिक एवं संवेदनात्मक भावों का विवरण आंखों के द्वारा विस्तार से मिल जाता है। आपको आंखों को पढने की कला आना चाहिए। आंखों में झाँकने का अर्थ है, मन का आंतरिक परिदृश्य देखना। आंखों की मूकभाषा आंतरिक द्वंद को उजागर कर देती है। दुःख और खुशी, दोनों ही भावो को आँखे अलग- अलग अंदाज़ में बयां करती है। पसंदीदा वास्तु को देखते ही आँखें फ़ैल जाती है और नापसंद की वास्तु को देखते ही सिकुड़ जाती है। वैज्ञानिक आधार पर भी यह सिद्ध किया जा चुका है कि yuvतियों कि आँखों की पुतलियाँ कुछ चौडी होती हैं।

4 comments:

बालकिशन said...

अच्छा लिखा आपने.
पर बड़ी ही संक्षिप्त जानकारी दी.
आंखों को पढने के विज्ञानं पर कुछ और रौशनी डाले तो बेहतर होगा.

Udan Tashtari said...

न जाने कितना साहित्य रचा जा चुका है इन आँखों पर. आपको पढ़कर अच्छा लगा.

Gali-koocha said...

Thanks

Gali-koocha said...

balkishan ji dhanywad. Mai eyes par aur likhne ka prayas karungi.