Thursday, August 7, 2008
बॉडी लैंग्वेज यानि देहभाषा
जब मानव ने अपने विचारों का आदान - प्रदान आरम्भ किया तो संकेतों , इशारों के द्वारा ही किया। धीरे-धीरे शब्दों का विकास हुआ और देहभाषा का प्रयोग कम होने लगा। जब शब्द निष्प्राण हो जाते हैं, तब शारीरिक हाव -भाव से ही बात समझाई जाती है। जब बच्चा जन्म लेता है तो उसके पास कोई शब्द नहीं होते, उसके हाव-भाव से माँ सब समझ लेती है। माँ और बच्चे का यह संप्रेषण पूर्णतः निर्भाषिक होता है। इसी देहभाषा का पुनर्जन्म बॉडी-लैंग्वेज के रूप में हुआ है। पिछले पॉँच- छ दशको पीछे मुड़कर देखें तो देहभाषा के बारे में मनोवैज्ञानिकों ने विश्लेषण किए। निष्कर्ष यह निकल कर आया की देहभाषा का प्रभाव शाब्दिक संप्रेषण से लगभग आधा होता है। हमारे वार्तालाप का साठ प्रतिशत भाग अशब्दिक ही होता है। दृष्टिहीन और मूकबधिर संकेतों और ध्वनी के माध्यम से ही संचार करते है। हमारे आंतरिक भाव भी हम देहभाषा द्वारा दर्शाते हैं। मुस्कराहट, क्रोध तथा दुःख भी बिना शब्दों के ही दर्शाया जाता है।
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