Monday, August 4, 2008

निंदा

निंदा यानि बुराई ऐसा तपता स्वाद है जिसे हर कोई रस लेकर सुनता है। कई बार तो ऐसा होता है की व्यक्ति न जानते हुए बुराई करने लगता है। बोलते हुए उसे ध्यान ही नही रहता कि वह जिन बातो को रोचक बना कर बोले जा रहा है वह वास्तव में निंदा है। अक्सर ऐसा होता है कि हम किसी कि प्रशंसा करते -करते निंदा करने लगते हैंj और हमें पता ही नही चलता। । लेकिन जब कोई वार्तालाप निंदा काi रूप ले लेता है तो वह काँटों की तरह चुभने लगता है । निंदा को बीमार मानसिकता का पर्याय मन जाता है। बुराई करने से पहले यह विचार कर ले की क्या आप स्वयं उन बुराइयों से बचे हुए हैं। निंदा करने वाले भूल जाते हैं की वे भी उन्ही में से एक है। कुछ लोग बड़े महँ निंदक होते है। बिना बुराई किए उनका दिन नही गुजरता। जब तक किसी की बुराई न कर ले खाना हजम नही होता। ऐसे लोगो के यहाँ जमावडा लगा रहता है। कुछ लोग सुनने और कुछ लोग सुनाने को बेताब रहते है। जो लोग दूसरों की बुराई करने में मजे लेते हैं, उनका व्यक्तित्व विकृत होने लगता है। न तो वे स्वयं खुश रहते है और न औरो को खुश रहने देते हैं। ऐसे लोग समाज में बुराइयाँ फैलाते हैं। ऐसे लोगो को सुधरने के लिए उनका दिमागी विश्लेषण किया जन जरुरी है। उन्हें कार्यो में व्यस्त rkhakar अच्छे vicharo से उनका brain wash करना होगा तभी समाज में अच्छी मानसिकता का vikas होगा । निंदक से नही prashanshak से smaj आगे बढ़ता है। इसलिए निंदक नही prashansak बने।

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