Friday, August 1, 2008

मध्यप्रदेश का शिमला - पचमढ़ी


दोस्तों यह पचमढ़ी है।
पॉँच है गुफाए यहाँ , पहाडियां अनगिनत । हमने हर पहाडी चढ़ी है। दोस्तों यह पचमढ़ी है। पॉँच है मढिया यहाँ , घाटियाँ अनगिनत, हमने हर घटी चढी है, दोस्तों यह पचमढ़ी है। ऊँची- ऊँची पहाड़ी चढ़कर, नज़ारे को नज़र करने, सूरज ने अनगिनत सीढियाँ चढी है। दोस्तों यह पचमढ़ी है। झरनों की सरगम में, तन-मन थिरकाने kओ , एक -दूसरे में होड़ लगी है। दोस्तों यह पचमढ़ी है। सूरज भी वाही है, चंदा भी वाही है, बस रौशनी नई- नई है। दोस्तों यह पचमढ़ी है। सूरज को सीढियों से चढ़ते देखा, दबे पाँव उसे उतरते देखा। चढ़ने- उतरने कीbazई लगी है। दोस्तों यह पचमढ़ी है। मानव के पूर्वज , ढेरों है यहाँ , जीवन की सरगम में , राग नई chhidhi है, दोस्तों यह पचमढ़ी है। पदों के नीचे से , पहाडो के पीछे से सूरज niklne और doobne से sanso की सरगम और badhi है। दोस्तों यह पचमढ़ी है।

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