Wednesday, August 20, 2008

पहचान

प्रतिभा की पहचान मौलिकता से ही होती है। जो जितना अपनी तरह से लिखता है, वह उतना ही प्रभावशाली होता है। दूसरो का अनुकरण करना बुरा नहीं है, परन्तु ज्यो का त्यों किसी की नक़ल करना बहुत बुरी बात है। अपने व्यक्तित्व की पहचान बनने के लिए हमें अपने कार्यों, लेखन, रहने के ढंग सभी में मौलिकता बनाकर रखनी पड़ती है। यही हमारी वास्तविक संपत्ति है। इससे हमारा व्यक्तित्व निखरता है और साथ ही आकर्षण भी पैदा करता है। इस निखर को लेन और आकर्षण पैदा करने के लिए अपनी मौलिकता को बनाए। इसे बनाना और बढ़ाना दोनों ही आसान है। अपनी शक्ति को पहचाने, मनन करें। जो भी कार्य करें, डूबकर करें। अपनी मौलिकता को कभी भी दबाने का प्रयास न करें। इससे हमारी प्रतिभा कम और ख़त्म भी हो सकती है। हर व्यक्ति में अपना अलग अंदाज़ होता है। उसे पहचानकर विकसित करे।

पर्यावरण को बनाए हरा-भरा


प्रकृति ने हमें ये दिया, वो दिया, भेदभाव नहीं किया, ये बातें लगभग हर चौथा व्यक्ति करता है। परन्तु उस प्रकृति की देखभाल और रक्षा करने की बात करने वाले चंद लोग ही होते हैं, जो पेड़ लगाकर, पेडो को काटने से बचाकर पर्यावरण को समृद्ध कर रहे हैं। हम सभी जानते हैं की पौधे लगाने और उनकी उचित देखभाल से ही हमारा पर्यावरण हरा-भरा रहेगा। फ़िर भी हम अपने लिए मकान बनाने के लिए, होटल बनाने के लिए और अन्य जरूरतों के हिसाब से पेड़ काटकर ज़मीं को खाली करते हैं और भूल जाते हैं की प्रकृति और पर्यावरण का क्या होगा। सभी से कहना सिर्फ़ इतना है की अपने भविष्य का ध्यान रखते हुए यह करे की यदि एक पेड़ कांटे तो कहीं भी उचित स्थान देखकर एक पेड़ लगा अवश्य दे और उसकी देखभाल करे। यदि आपको कहीं जगह नही मिलती तो किसी मन्दिर में पेड़ लगवा सकते हैं।

Tuesday, August 19, 2008

आप भी खाए - मोदक


मोदक, गणेश जी को बड़े प्रिय हैं। मोदक दो तरह से बनाए जाते हैं। एक तो मावे यानि खोवे के और दूसरे के केवल मेवे के। मैदे को मोयन डालकर कड़ा गूंथ लें। मावे को भूँजकर उसमे स्वादानुसार शक्कर मिला लें। उसी में इलायची पावडर डालें। मैदे की छोटी-छोटी लोइयां बनाकर बेल लें। एक पुरी में, एक चम्मच भरावन रखकर मोदक का गोल आकार दें। घी में डीप फ्राय करें। मेवे के मोदक बनाने के लिए काजू, बादाम, पिस्ता बारीक़ काट लें। कढाई में एक चम्मच घी डालकर कटे मेवे चिरौंजी और किशमिस डालें। स्वादानुसार शक्कर डालकर मिलाये। बिली हुई पुरी में एक चम्मच भरावन भरकर मोदक की तरह गोल कर लें और डीप फ्राय कर ले। भोग लगाकर ही खाएं।

Monday, August 18, 2008

त्यौहार का महत्त्व


आज़ादी का पर्व और रक्षाबंधन का पर्व दोनों मन गए। खुशी से हमने मिठाइयां बाटी और खा भी लीं। अब देखें इन दोनों में समानता कहा है। वैसे देखा जाय तो दोनों ही हमें बांधने का , जोड़ने का काम करते हैं। स्वतंत्रता दिवस सारे देश को एक सूत्र में बाँधता है और रक्षा सूत्र एक व्यक्ति से व्यक्ति को आपस में जोड़ता है। इस प्रकार दोनों ही पर्व सभी को जोड़ने की कोशिश में लगे रहते हैं। पर्वों का प्रमुख उद्देश्य सभी को प्रेम की एक श्रंखला में बांधना है। हमारे देश में अनेक भाषाओँ का प्रयोग करने वाले रहते हैं। वे अलग -अलग पर्व एक साथ मिलकर मानते हैं। जिसका मूल उद्देश्य प्रेम बढ़ाना और एकता में बांधना है। प्रेम और भाईचारे के ये पर्व इसी प्रकार हर्षोल्लास से मनाये जाए इसी आशा के साथ जयहिंद, रक्षा बंधन की शुभकामनायें।

Tuesday, August 12, 2008

अपनी गलती मानना - बड़ी बात है - - -

हमारा स्वभाव ही ऐसा है की हम नित नई गलतियाँ करते हैं और उनसे बहुत कुछ सीखते हैं। अपने दोषों को पहचानना और उन्हें दूर करना यही सुखी जीवन का फंडा है । हम जो ग़लत करते हैं उसे स्वीकार करना ही सबसे अच्छी बात है। जो गलती करे और माने नही वह अंधकार में घिरता जाता है। जो गलती करके दोहराता जाता है वह दोषों के महाजाल में फंस जाता है। बुरे विचारो को जल्दी ही मन से हटा दे, अपनी गलती मानकर उसे सुधारने का प्रयास करें। अच्छा व्यवहार एक अद्भुत कला है जिसे हर कोई सीख सकता है। दूसरों के दोष न ढूंढकर अपने दोष देखना साहस का कार्य है। उस दोष को दूर करना ही महानता है। अपनी गलतियाँ माने और उनसे सीखें।

Monday, August 11, 2008

सीखें 'स्व' का सम्मान करना

कोई भी व्यक्ति तभी सफल हो सकता है जब उसे स्वयं पर भरोसा होता है। अपना सम्मान करने वाले ही हर क्षेत्र में सफलता पूर्वक आगे बढ़ते हैं। यह देखा गया है की जो ख़ुद का सम्मान नही करते वे न तो स्वयं सफल होते हैं, न ही दूसरे को सफल होने देते है। इसी को दूसरे शब्दों में आत्मविश्वास कहते हैं। आत्मविश्वासी बड़ी से बड़ी कठिनाई को आसानी से हल कर लेता है। वह किसी से इर्ष्या नही करता और सभी की मदद करने का प्रयास करता है। जो ख़ुद को नही पहचान पाते वे हमेशा असमंजस में रहते हैं। क्या करें, क्या न करें की स्थिति में वह भटकते रहते है। अपनी अन्दर की क्षमताओं को बिना पहचाने जो भी कार्य संपादित किए जाते हैं ,उनमे निष्कर्ष पर प्रश्न चिह्न लग जाता है, इसलिए स्वयं की क्षमताओं को पचंकर, आत्मविश्वास के साथ आगे बढे , सफलता आपके हाथ होगी।

भजिये




बारिश के मौसम में भजिए खाने का मज़ा ही निराला होता है। गरम-गरम भजिये और चटपटी चटनी मिल जाए तो क्या कहने। रोज़ तो आप गिलकी, लौकी, बैगन, आलू और प्याज़ के भजिये खा सकते हैं। पर जब व्रत होते हैं तब क्या बनाए की समस्या होती है। व्रत में सिंघाडे के आटे का घोल बनाकर आलू, गिलकी और लौकी के भजिए बनाए जा सकते हैं। अपनी सुविधानुसार आप फलाहारी नमक , जीरा, काली मिर्च, हरा धनिया का प्रयोग कर सकते हैं। इसी प्रकार तलने के लिए मूंगफली का तेल या घी भी इस्तेमाल कर सकते हैं। चटपटी चटनी बनने के लिए एक मुट्ठी मूंगफली को तवे पर सेक लें, उसमे छोटा चम्मच जीरा, ४ हरी मिर्च, नमक, छोटा चम्मच शक्कर, एक चम्मच नीबू का रस डालकर पीस लें। मजे लेकर खाएं।

Saturday, August 9, 2008

मन का दर्पण हैं आँखें


आँखें वह सब कह देती हैं जो ज़बान कहने में हिचकती या चुप रह जाती है। जो कहा जा रहा है कितना सही है, कितना ग़लत , यह भी आंखों से दिख जाता है। मानसिक एवं संवेदनात्मक भावों का विवरण आंखों के द्वारा विस्तार से मिल जाता है। आपको आंखों को पढने की कला आना चाहिए। आंखों में झाँकने का अर्थ है, मन का आंतरिक परिदृश्य देखना। आंखों की मूकभाषा आंतरिक द्वंद को उजागर कर देती है। दुःख और खुशी, दोनों ही भावो को आँखे अलग- अलग अंदाज़ में बयां करती है। पसंदीदा वास्तु को देखते ही आँखें फ़ैल जाती है और नापसंद की वास्तु को देखते ही सिकुड़ जाती है। वैज्ञानिक आधार पर भी यह सिद्ध किया जा चुका है कि yuvतियों कि आँखों की पुतलियाँ कुछ चौडी होती हैं।

Thursday, August 7, 2008

बॉडी लैंग्वेज यानि देहभाषा

जब मानव ने अपने विचारों का आदान - प्रदान आरम्भ किया तो संकेतों , इशारों के द्वारा ही कियाधीरे-धीरे शब्दों का विकास हुआ और देहभाषा का प्रयोग कम होने लगाजब शब्द निष्प्राण हो जाते हैं, तब शारीरिक हाव -भाव से ही बात समझाई जाती हैजब बच्चा जन्म लेता है तो उसके पास कोई शब्द नहीं होते, उसके हाव-भाव से माँ सब समझ लेती हैमाँ और बच्चे का यह संप्रेषण पूर्णतः निर्भाषिक होता हैइसी देहभाषा का पुनर्जन्म बॉडी-लैंग्वेज के रूप में हुआ हैपिछले पॉँच- दशको पीछे मुड़कर देखें तो देहभाषा के बारे में मनोवैज्ञानिकों ने विश्लेषण किएनिष्कर्ष यह निकल कर आया की देहभाषा का प्रभाव शाब्दिक संप्रेषण से लगभग आधा होता हैहमारे वार्तालाप का साठ प्रतिशत भाग अशब्दिक ही होता हैदृष्टिहीन और मूकबधिर संकेतों और ध्वनी के माध्यम से ही संचार करते हैहमारे आंतरिक भाव भी हम देहभाषा द्वारा दर्शाते हैंमुस्कराहट, क्रोध तथा दुःख भी बिना शब्दों के ही दर्शाया जाता है

Monday, August 4, 2008

निंदा

निंदा यानि बुराई ऐसा तपता स्वाद है जिसे हर कोई रस लेकर सुनता है। कई बार तो ऐसा होता है की व्यक्ति न जानते हुए बुराई करने लगता है। बोलते हुए उसे ध्यान ही नही रहता कि वह जिन बातो को रोचक बना कर बोले जा रहा है वह वास्तव में निंदा है। अक्सर ऐसा होता है कि हम किसी कि प्रशंसा करते -करते निंदा करने लगते हैंj और हमें पता ही नही चलता। । लेकिन जब कोई वार्तालाप निंदा काi रूप ले लेता है तो वह काँटों की तरह चुभने लगता है । निंदा को बीमार मानसिकता का पर्याय मन जाता है। बुराई करने से पहले यह विचार कर ले की क्या आप स्वयं उन बुराइयों से बचे हुए हैं। निंदा करने वाले भूल जाते हैं की वे भी उन्ही में से एक है। कुछ लोग बड़े महँ निंदक होते है। बिना बुराई किए उनका दिन नही गुजरता। जब तक किसी की बुराई न कर ले खाना हजम नही होता। ऐसे लोगो के यहाँ जमावडा लगा रहता है। कुछ लोग सुनने और कुछ लोग सुनाने को बेताब रहते है। जो लोग दूसरों की बुराई करने में मजे लेते हैं, उनका व्यक्तित्व विकृत होने लगता है। न तो वे स्वयं खुश रहते है और न औरो को खुश रहने देते हैं। ऐसे लोग समाज में बुराइयाँ फैलाते हैं। ऐसे लोगो को सुधरने के लिए उनका दिमागी विश्लेषण किया जन जरुरी है। उन्हें कार्यो में व्यस्त rkhakar अच्छे vicharo से उनका brain wash करना होगा तभी समाज में अच्छी मानसिकता का vikas होगा । निंदक से नही prashanshak से smaj आगे बढ़ता है। इसलिए निंदक नही prashansak बने।

Sunday, August 3, 2008

सम्मान

घर हो या बाहर सभी सम्मान पाना चाहते हैं। सम्मान पाने के लिए सम्मान देना भी बहुत जरुरी है। हमारे धर्मग्रन्थ बताते हैं कि सम्मान न देने के कारण महाभारत जैसे वीभत्स युद्ध हुए। दुर्योधन ने अपने भाई पांडवों को सम्मान नही दिया, द्रौपदी ने आपा खो दिया और दुर्योधन को अंधे का पुत्र अँधा कह दिया। dउर्योधन ने भरी सभा में अपनी भाभी का अपमान किया। पूरा खानादान baदले कि आग में जलकर स्वाहा हो गया। सम्मान पाने के चक्कर में सब एक-दुसरे के दुश्मन बनते गए।

दूसरी ओर रामचरित मानस में मंथरा कि कथनी और कैकेई कि जिद से राम को वन जाना पड़ा। परन्तु किसी ने भी किसी का अपमान नही किया। जो जिस सम्मान के लायक थे उन्हें वह सम्मान सभी ने दिया। परस्पर स्नेह बनाए रखने के लिए सभी ने परिस्थितियों का सामना करते हुए, सम्मान बनाए रखा। हमें अपने माता-पिता, शिक्षक, बड़ों और छोटों सभी का सम्मान करना चाहिए जिससे हमें सम्मान मिले।

किशोर कुमार


फ़िल्म संगीत और अभिनय की दुनिया का जाना पहचाना नाम है किशोर कुमार। किशोर कुमार ने गायिकी और अभिनय के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ा। आज अगर वे होते तो संगीत को और भी अनोखे अंदाज में पेश करते। उनके परिवार में दो बेटे और पत्नी लीना चंद्रावरकर हैं। किशोर दा के दोनों बेटे भी गायक हैं। ४ अगस्त १९२९ को खंडवा में जन्मे किशोर दा को आज सारा संगीत जगत श्रद्धांजलि दे रहा है।

Saturday, August 2, 2008

मित्रता दिवस


आज मित्रता दिवस है। सभी को शुभकामनाए। दोस्ती वह सम्बन्ध है जो हर रिश्ते से बढ़कर है। इसे निभाना दोनों दोस्तों की आपसी समझ पर निर्भर है। सच्ची दोस्ती वाही है जो बिना किसी प्रतिफल की आशा से की जाती है। दोस्ती में एक दूसरे की भावनाओं को समझकर व्यवहार किया जाता है। दोस्त का दर्द बिना कहे ही जो समझ ले वाही सच्चा दोस्त है। यदि किसी शंका वश मनमुटाव पैदा हो जाए तो उसे तत्काल ही दूर कर लेना चाहिए। पहले आप- पहले आप के चक्कर में नही पढ़ना चाहिए।

Friday, August 1, 2008

मध्यप्रदेश का शिमला - पचमढ़ी


दोस्तों यह पचमढ़ी है।
पॉँच है गुफाए यहाँ , पहाडियां अनगिनत । हमने हर पहाडी चढ़ी है। दोस्तों यह पचमढ़ी है। पॉँच है मढिया यहाँ , घाटियाँ अनगिनत, हमने हर घटी चढी है, दोस्तों यह पचमढ़ी है। ऊँची- ऊँची पहाड़ी चढ़कर, नज़ारे को नज़र करने, सूरज ने अनगिनत सीढियाँ चढी है। दोस्तों यह पचमढ़ी है। झरनों की सरगम में, तन-मन थिरकाने kओ , एक -दूसरे में होड़ लगी है। दोस्तों यह पचमढ़ी है। सूरज भी वाही है, चंदा भी वाही है, बस रौशनी नई- नई है। दोस्तों यह पचमढ़ी है। सूरज को सीढियों से चढ़ते देखा, दबे पाँव उसे उतरते देखा। चढ़ने- उतरने कीbazई लगी है। दोस्तों यह पचमढ़ी है। मानव के पूर्वज , ढेरों है यहाँ , जीवन की सरगम में , राग नई chhidhi है, दोस्तों यह पचमढ़ी है। पदों के नीचे से , पहाडो के पीछे से सूरज niklne और doobne से sanso की सरगम और badhi है। दोस्तों यह पचमढ़ी है।