Saturday, August 9, 2008

मन का दर्पण हैं आँखें


आँखें वह सब कह देती हैं जो ज़बान कहने में हिचकती या चुप रह जाती है। जो कहा जा रहा है कितना सही है, कितना ग़लत , यह भी आंखों से दिख जाता है। मानसिक एवं संवेदनात्मक भावों का विवरण आंखों के द्वारा विस्तार से मिल जाता है। आपको आंखों को पढने की कला आना चाहिए। आंखों में झाँकने का अर्थ है, मन का आंतरिक परिदृश्य देखना। आंखों की मूकभाषा आंतरिक द्वंद को उजागर कर देती है। दुःख और खुशी, दोनों ही भावो को आँखे अलग- अलग अंदाज़ में बयां करती है। पसंदीदा वास्तु को देखते ही आँखें फ़ैल जाती है और नापसंद की वास्तु को देखते ही सिकुड़ जाती है। वैज्ञानिक आधार पर भी यह सिद्ध किया जा चुका है कि yuvतियों कि आँखों की पुतलियाँ कुछ चौडी होती हैं।

Thursday, August 7, 2008

बॉडी लैंग्वेज यानि देहभाषा

जब मानव ने अपने विचारों का आदान - प्रदान आरम्भ किया तो संकेतों , इशारों के द्वारा ही कियाधीरे-धीरे शब्दों का विकास हुआ और देहभाषा का प्रयोग कम होने लगाजब शब्द निष्प्राण हो जाते हैं, तब शारीरिक हाव -भाव से ही बात समझाई जाती हैजब बच्चा जन्म लेता है तो उसके पास कोई शब्द नहीं होते, उसके हाव-भाव से माँ सब समझ लेती हैमाँ और बच्चे का यह संप्रेषण पूर्णतः निर्भाषिक होता हैइसी देहभाषा का पुनर्जन्म बॉडी-लैंग्वेज के रूप में हुआ हैपिछले पॉँच- दशको पीछे मुड़कर देखें तो देहभाषा के बारे में मनोवैज्ञानिकों ने विश्लेषण किएनिष्कर्ष यह निकल कर आया की देहभाषा का प्रभाव शाब्दिक संप्रेषण से लगभग आधा होता हैहमारे वार्तालाप का साठ प्रतिशत भाग अशब्दिक ही होता हैदृष्टिहीन और मूकबधिर संकेतों और ध्वनी के माध्यम से ही संचार करते हैहमारे आंतरिक भाव भी हम देहभाषा द्वारा दर्शाते हैंमुस्कराहट, क्रोध तथा दुःख भी बिना शब्दों के ही दर्शाया जाता है

Monday, August 4, 2008

निंदा

निंदा यानि बुराई ऐसा तपता स्वाद है जिसे हर कोई रस लेकर सुनता है। कई बार तो ऐसा होता है की व्यक्ति न जानते हुए बुराई करने लगता है। बोलते हुए उसे ध्यान ही नही रहता कि वह जिन बातो को रोचक बना कर बोले जा रहा है वह वास्तव में निंदा है। अक्सर ऐसा होता है कि हम किसी कि प्रशंसा करते -करते निंदा करने लगते हैंj और हमें पता ही नही चलता। । लेकिन जब कोई वार्तालाप निंदा काi रूप ले लेता है तो वह काँटों की तरह चुभने लगता है । निंदा को बीमार मानसिकता का पर्याय मन जाता है। बुराई करने से पहले यह विचार कर ले की क्या आप स्वयं उन बुराइयों से बचे हुए हैं। निंदा करने वाले भूल जाते हैं की वे भी उन्ही में से एक है। कुछ लोग बड़े महँ निंदक होते है। बिना बुराई किए उनका दिन नही गुजरता। जब तक किसी की बुराई न कर ले खाना हजम नही होता। ऐसे लोगो के यहाँ जमावडा लगा रहता है। कुछ लोग सुनने और कुछ लोग सुनाने को बेताब रहते है। जो लोग दूसरों की बुराई करने में मजे लेते हैं, उनका व्यक्तित्व विकृत होने लगता है। न तो वे स्वयं खुश रहते है और न औरो को खुश रहने देते हैं। ऐसे लोग समाज में बुराइयाँ फैलाते हैं। ऐसे लोगो को सुधरने के लिए उनका दिमागी विश्लेषण किया जन जरुरी है। उन्हें कार्यो में व्यस्त rkhakar अच्छे vicharo से उनका brain wash करना होगा तभी समाज में अच्छी मानसिकता का vikas होगा । निंदक से नही prashanshak से smaj आगे बढ़ता है। इसलिए निंदक नही prashansak बने।

Sunday, August 3, 2008

सम्मान

घर हो या बाहर सभी सम्मान पाना चाहते हैं। सम्मान पाने के लिए सम्मान देना भी बहुत जरुरी है। हमारे धर्मग्रन्थ बताते हैं कि सम्मान न देने के कारण महाभारत जैसे वीभत्स युद्ध हुए। दुर्योधन ने अपने भाई पांडवों को सम्मान नही दिया, द्रौपदी ने आपा खो दिया और दुर्योधन को अंधे का पुत्र अँधा कह दिया। dउर्योधन ने भरी सभा में अपनी भाभी का अपमान किया। पूरा खानादान baदले कि आग में जलकर स्वाहा हो गया। सम्मान पाने के चक्कर में सब एक-दुसरे के दुश्मन बनते गए।

दूसरी ओर रामचरित मानस में मंथरा कि कथनी और कैकेई कि जिद से राम को वन जाना पड़ा। परन्तु किसी ने भी किसी का अपमान नही किया। जो जिस सम्मान के लायक थे उन्हें वह सम्मान सभी ने दिया। परस्पर स्नेह बनाए रखने के लिए सभी ने परिस्थितियों का सामना करते हुए, सम्मान बनाए रखा। हमें अपने माता-पिता, शिक्षक, बड़ों और छोटों सभी का सम्मान करना चाहिए जिससे हमें सम्मान मिले।

किशोर कुमार


फ़िल्म संगीत और अभिनय की दुनिया का जाना पहचाना नाम है किशोर कुमार। किशोर कुमार ने गायिकी और अभिनय के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ा। आज अगर वे होते तो संगीत को और भी अनोखे अंदाज में पेश करते। उनके परिवार में दो बेटे और पत्नी लीना चंद्रावरकर हैं। किशोर दा के दोनों बेटे भी गायक हैं। ४ अगस्त १९२९ को खंडवा में जन्मे किशोर दा को आज सारा संगीत जगत श्रद्धांजलि दे रहा है।

Saturday, August 2, 2008

मित्रता दिवस


आज मित्रता दिवस है। सभी को शुभकामनाए। दोस्ती वह सम्बन्ध है जो हर रिश्ते से बढ़कर है। इसे निभाना दोनों दोस्तों की आपसी समझ पर निर्भर है। सच्ची दोस्ती वाही है जो बिना किसी प्रतिफल की आशा से की जाती है। दोस्ती में एक दूसरे की भावनाओं को समझकर व्यवहार किया जाता है। दोस्त का दर्द बिना कहे ही जो समझ ले वाही सच्चा दोस्त है। यदि किसी शंका वश मनमुटाव पैदा हो जाए तो उसे तत्काल ही दूर कर लेना चाहिए। पहले आप- पहले आप के चक्कर में नही पढ़ना चाहिए।

Friday, August 1, 2008

मध्यप्रदेश का शिमला - पचमढ़ी


दोस्तों यह पचमढ़ी है।
पॉँच है गुफाए यहाँ , पहाडियां अनगिनत । हमने हर पहाडी चढ़ी है। दोस्तों यह पचमढ़ी है। पॉँच है मढिया यहाँ , घाटियाँ अनगिनत, हमने हर घटी चढी है, दोस्तों यह पचमढ़ी है। ऊँची- ऊँची पहाड़ी चढ़कर, नज़ारे को नज़र करने, सूरज ने अनगिनत सीढियाँ चढी है। दोस्तों यह पचमढ़ी है। झरनों की सरगम में, तन-मन थिरकाने kओ , एक -दूसरे में होड़ लगी है। दोस्तों यह पचमढ़ी है। सूरज भी वाही है, चंदा भी वाही है, बस रौशनी नई- नई है। दोस्तों यह पचमढ़ी है। सूरज को सीढियों से चढ़ते देखा, दबे पाँव उसे उतरते देखा। चढ़ने- उतरने कीbazई लगी है। दोस्तों यह पचमढ़ी है। मानव के पूर्वज , ढेरों है यहाँ , जीवन की सरगम में , राग नई chhidhi है, दोस्तों यह पचमढ़ी है। पदों के नीचे से , पहाडो के पीछे से सूरज niklne और doobne से sanso की सरगम और badhi है। दोस्तों यह पचमढ़ी है।