जन गण मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
पंजाब सिंध गुजरात मराठा
द्रविढ़ उत्कल बंग
विंध्य हिमांचल जमुना गंगा
उच्छल जलधि तरंग
तब शुभ नामे जागे
तब शुभ आशिष मांगे
गाये तब जय गाथा
जन गण मंगल दायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे
जय जयजय हे
आप सोच रहे होंगे की मै आपको जन गन मन क्यों सुना रही हूँ?
नही मै आपको यह बता रही हूँ की हमारा राष्ट्रगान विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रगान चुना गया है।
4 comments:
जय जयजय हे
jankari ke liye abhar or bhut bhut bdhai
Haan,yah khabar to suna tha...par yah nirnay na kar paayi ki kis base par ise sarvshreshth mana gaya...
Yadi aapko yah gyaat ho kripaya batane ki kripa kijiyega...
मैं भी यही पूछना चाहती हूँ कि प्रथम आने का कारण क्या है? सबसे अधिक गाये जाने वाला गान है तब तो कुछ विशेष नहीं है, क्योंकि हमारी जनसंख्या सबसे अधिक है।
राष्ट्रगान पर एक नजर
मैं बचपन से ही सोचता आया था कि आखिर ये कौन 'अधिनायक' और 'भारत भाग्य विधाता' हैं जिनके जयघोष से हम अपने राष्ट्रगान की शुरुआत करते हैं?
मुझे लगता था यह मातृभूमि भारत का ही नाम होगा, लेकिन हाल में एक मित्र के साथ इस पर चर्चा छिड़ी तो कई बातें सामने आईं...
जरा आप भी गौर करें...
शुरुआत करें इसके इतिहास से...
1- जन गण मन.. को नोबल विजेता गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर ने 1919 में लिखा था किंग जॉर्ज पंचम के सम्मान में जब वे महारानी के साथ भारत पधारे थे (इंडिया गेट भी उसी दौरान बना था जिसपर ब्रिटिश सरकार के वफादार बलिदानी सिपाहियों के नाम खुदवाए गए थे, और जिस पर आज भी भारत के राष्ट्रपति सभी सेनाध्यक्षों के साथ गणतंत्र दिवस की परेड से पहले फूल चढ़ाने जाते हैं)। कहा जाता है कि पंडित मोतीलाल नेहरू ने इसमें पांच और अंतरे जुड़वाए थे जो किंग और क्वीन के सम्मान में थे।
इसके मूल बंगाली संस्करण में भी सिर्फ पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा.. आदि राज्यों का उल्लेख था जो सीधे ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन थे। गौर करने वाली बात है कि कश्मीर, राजस्थान आंध्र, मैसूर केरल आदि किसी भी देशी रियासत या राज्य का जिक्र नहीं था जो कि तब भी अखंड भारत के महत्वपूर्ण अंग थे। हिंद महासागर और अरब सागर का भी जिक्र नहीं है जो उस वक्त सीधे तौर पर पुर्तगालियों के नियंत्रण में थे।
'जन गण मन अधिनायक' सीधे तौर पर जॉर्ज पंचम को बुलाया गया था जो भारत के भाग्य विधाता थे।
अगले अंतरों के भी अर्थ उन्हीं का महिमा मंडन करते हैं। जरा बानगी देखें
पंजाब सिंध गुजरात मराठा द्रविढ़ उत्कल बंग विंध्य हिमांचल जमुना गंगा उच्छल जलधि तरंग... (इन सभी राज्यों, पर्वतों और नदियों के तट पर रहने वाले आपके आशीर्वचनों के उभिलाषी हैं )
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मांगे, गाये तव जय गाथा... (भारतीय) लोग आपका शुभ नाम लेते हुए जागते हैं और आपसे शुभ आशीर्वाद मांगते हैं। इसके बाद आपकी जयगाथा गाते हैं।
जन गण मंगल दायक जय हे भारत भाग्य विधाता... हे (भारतीय) जन गण को मंगल प्रदान करने वाले, हे भारत के भाग्य विधाता, आपकी जय हो.. जय हो, जय हो, जय हो.. हर तरफ जय ही जय हो
पूरी कविता में कहीं भी भारत का जिक्र नहीं है। ये मातृभूमि की वंदना नहीं, बल्कि महारानी और महाराजा का गुणगान था।
आगे से जब भी आप राष्ट्रगान के तौर पर जन गण मन अधिनायक दोहराएं, एक बार विचार अवश्य करें कि पिछले पचास वर्षों से भी अधिक समय से आखिर किसकी जय कर रहे हैं हम डेढ़ अरब भारतवासी?
क्या हम कभी समझ पाएंगे ???
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