Thursday, January 14, 2010

मन की पतंग


मन की पतंग को सांसों की डोर से बांधकर,
छोड़ दिया है खुले आकाश में,
शायद जा पहुंचे गंतव्य पर?
हो सकता है मेरा लक्ष्य, तुम्हारे से अलग हो?
हो सकता है वही हो, जो मेरा है?
तुम मेरे सफ़र के सफल होने की प्रार्थना करना,
मै तुम्हारे लिए दिल से दुआ करूंगी।
डोर मजबूत बांधना , कहीं हवा के थपेड़ों से खुल न जाए!

2 comments:

Anonymous said...

"मन की पतंग को सांसों की डोर से बांधकर"
बहुत सुंदर.

संजय भास्‍कर said...

behtreen ......