Sunday, July 4, 2010

हिमाकत




एक बार फिर बरसात का स्वागत है
मौसम की हिमाकत देखो, घेर लिया है मिलकर,
बरखा ,बदरा, बिजुरी,
चम्-चम् चमके बिजुरी ,
छम-छम बरसे बदरा.
बूंदों की थाप पर, हवा गा रही है
उनको सन लेके बहार आ रही है































































































































































Sunday, April 4, 2010

विचार-गोष्टी


डा वेद प्रताप वैदिक जी की पुस्तक भाजपा , हिंदुत्व और मुसलमान विषय पर केन्द्रित विचार-गोष्टी का सञ्चालन करते हुए मुझे जो हर्ष हुआ उसकी मै व्याख्या नहीं कर सकती। विचार - गोष्टी में मंच पर बाएं से कैलाश सारंग जी, कार्यक्रम के अध्यक्ष मदन मोहन जोशी जी, मो आरिफ बेग, डॉ वेद प्रताप वैदिक एवं संस्था के संचालक सनत जैन।

Thursday, January 28, 2010

शांति

सुना है शांति नाम है उसका,

किसी से कोई गिला नहीं, न किसी से कोई शिकवा।

न मिलने का सुख, न बिछड़ने का दुःख।

फिर भी सोचा मिल लूं।

देखना चाहा दिखी नहीं,

लोगों से पूछा पर पता न पाया।

क्या तुमने उसे देखा है?

दिखे तो दिखाना, मिले तो मिलाना।

मेरा पता ले लो,

बताना बुलाया है।

हो सका तो निमंत्रण भेज दूंगी,

मेसेज करुँगी या ईमेल कर दूंगी।

मेरे घर का सीधा-सादा पता है।

न दाये मुड़ना न बांये जाना,

वहां से निकलकर इधर आ जाना।

मै कब से उसी शांति को खोजती हूँ,

उसकी हर पल बाट जोहती हूँ.

Wednesday, January 20, 2010

आया वसंत




आज विद्या देवी सरस्वती की पूजा है मंदिरों और शालाओं मै पिछले कई दिनों से वसंतोत्सव मानाने की तैयारियां चल रही थी प्रकृति की सुन्दरता का यह पर्व हर वर्ष धूमधाम से मनाया जाता है पिली सरसों से खेत और पीले गेंदे के फूलों से बाग मनमोहक लगते हैं आधुनिकता की भागदौड़ मै भी अनायास ही इन पर ध्यान चला जाता है अब झूले और मेलो का कई निश्चित समय तो नहीं रहा, फिर भी मंदिर प्रांगन मै झूले डाले जाते है ठण्ड के कम होने का एहसास तो कल रत से ही होने लगा है आज केसरिया चावल विशेष रूप से बनाये j ते है

Monday, January 18, 2010

हमारा जन-गन-मन








जन गण मन अधिनायक जय हे



भारत भाग्य विधाता



पंजाब सिंध गुजरात मराठा



द्रविढ़ उत्कल बंग



विंध्य हिमांचल जमुना गंगा



उच्छल जलधि तरंग



तब शुभ नामे जागे



तब शुभ आशिष मांगे



गाये तब जय गाथा
जन गण मंगल दायक जय हे

भारत भाग्य विधाता

जय हे जय हे जय हे

जय जयजय हे

आप सोच रहे होंगे की मै आपको जन गन मन क्यों सुना रही हूँ?

नही मै आपको यह बता रही हूँ की हमारा राष्ट्रगान विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रगान चुना गया है।

Saturday, January 16, 2010

कार्यशाला समाप्त


आज आई आई जे बी बर्लिन से आए पीटर मे सर की १२ दिवसीय अंतर राष्ट्रीय पत्रकारिता की कार्यशाला का समापन हुआ।
इ ऍम एस अकादमी आफ जर्नलिस्म भोपाल मे आयोजित इस कार्यशाला मे
३५ पत्रकारों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया।
मध्य प्रदेश शासन के नगरीय प्रशासन मंत्री श्री बाबूलाल गौर तथा गृहमंत्री श्री उमाशंकर गुप्ता
ने कार्यक्रम को सफल बनाया।
श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष श्री शलभ भदौरिया प्रमुख रूप से उपस्थित हुए।
अकादमी के संचालक श्री सनत जैन व् संपादक श्री अनिल बिहारी श्रीवास्तव ने
अतिथियों का स्वागत किया।
प्रशाशक श्री आर के गुरु ने प्रोफ़ेसर पीटर मे को अलोविरा का पौधा भेंट किया।
छात्रों ने स्मृति स्वरूप साँची का स्तूप भेंट किया।
कार्यक्रम का सञ्चालन जया शर्मा ने किया।

Friday, January 15, 2010

प्रश्न



पहुँच गई है पतंग वहाँ पर, भेज चाहा उसे जहाँ पर।


जाकर उनसे पूछ रही है, क्या मै पहुंची सही जगह पर?


क्या मै वह सब कह पाऊँगी ? जो चाहा है मन ने कहना,


कब मै वह सब कह पाऊँगी , चाहा है जो दिल ने कहना?


ठहर गई है पतंग वहीँ पर, भेजा था उसे जहाँ पर।


क्या फिर खुशियाँ मुझे मिलेंगी?


क्या इस धरा पर जीवन होगा खुशहाल?


कब बदलेंगे ये बदहाल?


?



Thursday, January 14, 2010

मन की पतंग


मन की पतंग को सांसों की डोर से बांधकर,
छोड़ दिया है खुले आकाश में,
शायद जा पहुंचे गंतव्य पर?
हो सकता है मेरा लक्ष्य, तुम्हारे से अलग हो?
हो सकता है वही हो, जो मेरा है?
तुम मेरे सफ़र के सफल होने की प्रार्थना करना,
मै तुम्हारे लिए दिल से दुआ करूंगी।
डोर मजबूत बांधना , कहीं हवा के थपेड़ों से खुल न जाए!

उत्साह


हम क्या चाहते हैं?

जो कहना वो कह नही पाते,

जो लिखना वो लिख नही पाते,

जो बनाना वो बना नही पाते ,

जो दिखाना वो दिखा नही पाते,

जहाँ जाना वहन जा नहीं पाते,

आखिर कब ख़त्म होगी यह आपाधापी की दौड़?

इसी की तलाश है,

कभी तो समय हमारा होगा,

जब हम जो चाहेंगे वो कहेंगे,

जिससे चाहेंगे उससे कहेंगे,

जो चाहेंगे वो लिखेंगे,

जिसे चाहेंगे उसे सुनायेंगे,

जो चाहेंगे वो दिखायेंगे,

जिसे चाहेंगे उसे दिखायेंगे

यही तो जीने का उत्साह है * * * *