कल हमने सबके साथ मिलकर गणपति जल में विसर्जित किए। धूम-धाम से ढोल-मंजीरे बजाते हुए गणपति की प्रतिमाओं को जलविहार कराया। आरती की और जल में यह कहते हुए विसर्जित किया-- गणपति बाप्पा मोरिया, अगले बरस तू जल्दी आ। हम एक मोहल्ले के सब लोग मिलकर गणपति बिठाते हैं। रोज मिलकर आरती करते हैं, प्रसाद बांटते हैं। पूरे दस दिन बहुत अच्छा लगता है। जब-जब गणेश-उत्सव मनाया जाएगा, हमें धन्यवाद करना होगा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का, जिन्होंने यह उत्सव मना कर लोगों को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया। यदि हर व्यक्ति थोड़ा सा समय निकालकर इस प्रकार मिलकर काम करे तो समाज में प्यार और भाईचारा बना रहेगा।
Monday, September 15, 2008
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3 comments:
आप ने सही कहा।
वर्ड वेरिफिकेशन हटाएँ वरना लोग टिप्पणियाँ करने से बिना ही लौट जाएँगे।
बिल्कुल सही कहा!!
bhut accha likha hi.
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