आज मन कितना है विचलित, पहले कभी नहीं था इतना। न जाने क्यूँ थका -थका सा , पहले नहीं थका था जितना। उनसे कितनी बार कहा है, इनसे कितनी बार बताया। फ़िर भी उनको समझ न आया, चाहे जितनी बार बताया। यह उस उदास मन की व्यथा है, जो किसी की याद, इंतजार में थका और उदास है। यह मन आपका भी हो सकता है और मेरा भी। यदि यह आपका है तो उसे समझाइये कि हमेशा जो वह चाहता है, वह हो नहीं सकता। जो उसे चाहिए वह मिल जाए, यह भी जरुरी नहीं। यह गीता का उपदेश नहीं है कि कर्म करो, फल कि इच्छा मत करो। आज के समय में ऐसे कर्तव्य निष्ठ का मिलना मुश्किल है जो कर्म करे और फल न चाहे। यदि सबके मन कि सब बातें पुरी होने लगेंगी तो विश्व व्यवस्था गडबडा जायेगी। इसलिए अपने उदास मन को समझाने का प्रयास करें। खुश रहने कि कोशिश करें।
Tuesday, November 11, 2008
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1 comment:
अच्छा लिखा है.
http://www.ashokvichar.blogspot.com
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