अंदर का नही, बाहर का।
वर्षों से इसी तरह, जलाया जा रहा है।
जल रहा है अविरल,
उसका अन्तःकरण, देखकर,
बलात्कार, भ्रूण हत्या,
बढ़ते भ्रष्टाचार,
मौन है फ़िर भी,
सुलग रहा है ,भीतर ही भीतर।
बाहर का दैत्य जलाया जा रहा है,
एक अदृश्य दैत्य द्वारा,
नही दिख रहा किसी को ,
नंगी आंखों से भी।
समाज का वह रावन,
जो छीन रहा है,
बालमन ki कोमलता,
बचपन के खिलौने।
थमा रहा है, एक लुप्त हथियार।
कैसे बचे? bikhrta बचपन?
कैसे मरे अंदर का रावन?