बीत गए एक-एक कर,
जीवन के ४४ बसंत।
हर दिन, हर पल कुछ नया संजोया,
मिला नहीं पर कोई अंत।
ढूंढ रहे थे नयन मगन हो,
एक अनवरत सत्य जो,
लघु, दीर्घ और अतिदीर्घ है,
यह यात्रा अविरल अनंत।
मूल्यों का संग्रह रहा,
हर पग पर आता-जाता।
कभी निभाया,कभी निपटाया,
सहज, सरल मन को भाता।
फ़िर आया एक नया शगूफा,
छेड़ गया मन का दर्पण।
रोया, छटपटाया कितना,
सुना गया न स्वर क्रंदन।
एक समय ऐसा भी आया,
भटक गया जब मन ऐसा।
नहीं रुका गतिरोध ह्रदय का,
सब प्रतिरोध व्यर्थ गया.
जीवन के ४४ बसंत।
हर दिन, हर पल कुछ नया संजोया,
मिला नहीं पर कोई अंत।
ढूंढ रहे थे नयन मगन हो,
एक अनवरत सत्य जो,
लघु, दीर्घ और अतिदीर्घ है,
यह यात्रा अविरल अनंत।
मूल्यों का संग्रह रहा,
हर पग पर आता-जाता।
कभी निभाया,कभी निपटाया,
सहज, सरल मन को भाता।
फ़िर आया एक नया शगूफा,
छेड़ गया मन का दर्पण।
रोया, छटपटाया कितना,
सुना गया न स्वर क्रंदन।
एक समय ऐसा भी आया,
भटक गया जब मन ऐसा।
नहीं रुका गतिरोध ह्रदय का,
सब प्रतिरोध व्यर्थ गया.