Tuesday, November 11, 2008


आज मन कितना है विचलित, पहले कभी नहीं था इतना। न जाने क्यूँ थका -थका सा , पहले नहीं थका था जितना। उनसे कितनी बार कहा है, इनसे कितनी बार बताया। फ़िर भी उनको समझ न आया, चाहे जितनी बार बताया। यह उस उदास मन की व्यथा है, जो किसी की याद, इंतजार में थका और उदास है। यह मन आपका भी हो सकता है और मेरा भी। यदि यह आपका है तो उसे समझाइये कि हमेशा जो वह चाहता है, वह हो नहीं सकता। जो उसे चाहिए वह मिल जाए, यह भी जरुरी नहीं। यह गीता का उपदेश नहीं है कि कर्म करो, फल कि इच्छा मत करो। आज के समय में ऐसे कर्तव्य निष्ठ का मिलना मुश्किल है जो कर्म करे और फल न चाहे। यदि सबके मन कि सब बातें पुरी होने लगेंगी तो विश्व व्यवस्था गडबडा जायेगी। इसलिए अपने उदास मन को समझाने का प्रयास करें। खुश रहने कि कोशिश करें।

Wednesday, November 5, 2008

बाल दिवस पर बच्चों को लौटाएं - उनका बचपन


बच्चे मन के सच्चे , सरे जग की आंखों के तारे------ १४ नवम्बर को हर वर्ष हम चाचा नेहरू का जन्मदिन मनाते हैं। इस वर्ष उनकी ११९ वी जयंती है। मैंने निश्चय किया है की मैं एक बच्चे को बाल-मजदूरी से मुक्त करूंगी। उसे शिक्षा दिलाने का प्रयास करुँगी। यह मेरा अपना विचार है। अगर आपके विचार भी कुछ ऐसे हों तो आप भी समाज को सुधरने के इस कार्य में शामिल हो जायेंगे।